नवरात्रि का पर्व आज से आरम्भ हो गया है। ऐसे में आपको बता दें कि मातारानी के 52 शक्तिपीठ हैं और उन्ही में शामिल है मां ज्वाला देवी मंदिर। कजहा जाता है सुख और और समृद्धि प्रदान करने वाले पावन शक्तिपीठों में से एक मां ज्वालामुखी का दिव्य धाम है। जी हाँ और इस पावन शक्तिपीठ को पवित्र और प्रचंड स्थान माना गया है। जी दरअसल शक्तिपीठ मां ज्वाला देवी के बारे में यह मान्यता है कि माता सती की अधजली जिह्वा यहां पर गिरी थी। जिसे कालांतर में लोगों ने मां ज्वालादेवी कहकर पुकारा और साधना की। माता के इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। कहा जाता है यहां पर निरंतर निकलने वाली अग्नि को ही मां ज्वालादेवी का प्राकट्य माना जाता है।
जी हाँ और यहां पर शक्ति के नौ स्वरूपों में नौ ज्वालाएं हमेशा जलती रहती हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ज्वाला देवी के इस चमत्कारिक शक्त्पिीठ में सदियों से पावन ज्वाला जल रही है, जो किसी भी प्रकार से बुझाने पर नहीं बुझती है। जी दरसल ऐसी मान्यता है कि मुगलकाल में सम्राट अकबर इस मंदिर में आया था। जी हाँ और पहले तो अकबर ने भगवती श्री ज्वालाजी की पवित्र ज्योति को बुझाने की तमाम कोशिश की, लेकिन जब अंत में असफल रहा, तो उसने भगवती के चरणों में स्वर्ण छत्र चढ़ाया।
कहा जाता है मां ज्वालादेवी का यह मंदिर काली धार नाम की एक पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। इस मंदिर के ऊपर सुनहरे गुंबद और ऊंची चोटियां बनी है। इसके अलावा मंदिर के अंदर तीन फीट गहरा और चौकोर गड्ढा है, जिसके चारों ओर रास्ता बना हुआ है। वहीं मां के दरबार के ठीक सामने है सेजा भवन, जो कि भगवती ज्वाला देवी का शयन कक्ष है। इस भवन में प्रवेश करते ही बीचोंबीच माता का पलंग ( सिंहासन ) दिखाई पड़ता है।
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