भगवान शिव की तंत्र साधना में भैरव का विशेष महत्व है| भैरव वैसे तो शिव जी के ही रौद्र रूप हैं| लेकिन कहीं-कहीं पर इनको शिव का पुत्र भी माना गया है| कहीं-कहीं पर ये भी माना जाता है कि जो कोई भी शिव के मार्ग पर चलता है, उसे भैरव कहा जाता है| इनकी उपासना से भय और अवसाद का नाश होता है| तंत्र साधना के लिए काल भैरव अष्टमी उत्तम मानी जाती है। भैरव साधना करने से भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं। भैरव साधना काफी कठिन होती है और भैरव बाबा की साधना में सात्विकता और एकाग्रता का ध्यान रखना होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव ने भैरव बाबा के रूप में अवतार लिया था। इसी उपलक्ष में इस तिथि पर व्रत व पूजा का महत्त्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हें दिशाओं का रक्षक और काशी का संरक्षक भी कहा जाता है। इनके भक्तों से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहता है।
इससे व्यक्ति को अदम्य साहस मिल जाता है| शनि और राहु की बाधाओं से मुक्ति के लिए भैरव की पूजा अचूक होती है| मार्गशीर्ष में भगवान भैरव की विशेष उपासना कालाष्टमी पर की जाती है| इस बार कालाष्टमी 19 नवंबर को मनाई जाएगी|
क्या हैं भैरव के अलग-अलग स्वरूपों की विशेषताएँ:-
- बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं, इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं|
- भैरव के तमाम स्वरुप बताए गए हैं- असितांग भैरव, रूद्र भैरव, बटुक भैरव और काल भैरव|
- मुख्यतः बटुक भैरव और काल भैरव स्वरुप की पूजा और ध्यान सर्वोत्तम मानी जाती है|
- इस सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी होती है|
- काल भैरव इनका साहसिक युवा रूप है|
- इनकी आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है|
- असितांग भैरव और रूद्र भैरव की उपासना अति विशेष है, जो मुक्ति मोक्ष और कुंडलिनी जागरण के दौरान प्रयोग की जाती है|
किस तरह करें भगवान भैरव की उपासना?
- संध्याकाल में भैरव जी की पूजा करें
- इनके सामने एक बड़े से दीपक में सरसों के तेल का दीपक जलाएं|
- इसके बाद उरद की बनी हुई या दूध की बनी हुयी वस्तुएं उन्हें प्रसाद के रूप में अर्पित करें|
- विशेष कृपा के लिए इन्हें शरबत या सिरका भी अर्पित करें|
- तामसिक पूजा करने पर भैरव देव को मदिरा भी अर्पित की जाती है|
- प्रसाद अर्पित करने के बाद भैरव जी के मन्त्रों का जाप करें|
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