अब रायपुर के कृषि महाविद्यालय में भी मिल सकेगा लजीज और पौष्टिक कड़कनाथ

अब रायपुर के कृषि महाविद्यालय में भी मिल सकेगा लजीज और पौष्टिक कड़कनाथ
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रायपुर: सर्दी के मौसम की शुरुआत हो चुकी है, ऐसे में ठंड से बचने व औषधीय गुण से भरपूर, कम फैट और हमेशा याद रहने वाले लजीज स्वाद के लिए चर्चित छत्तीसगढ़ के कड़कनाथ मुर्गे कांकेर के साथ ही रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में मिलने लगेंगे. वह भी बाजार भाव की अपेक्षा कम सस्ते दामों में. हर वर्ष ठंड के दिनों में कड़कनाथ की मांग बढ़ जाती है.

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कड़कनाथ को स्थानीय भाषा में कालीमासी भी कहा जाता हैं, क्योंकि इसका मांस, चोंच, जुबान, टांगे, चमड़ी आदि सब कुछ काले रंग का होता है. यह प्रोटीनयुक्त होता है और इसमें वसा बहुत कम रहता है. कृषि विवि के अखिल भारतीय समन्वित कृषि प्रणाली अनुसंधान परियोजना के प्रभारी डॉ. सुनील अग्रवाल ने बताया कि दस हेक्टेयर में उद्यानिकी फसल, पशुपालन के साथ कड़कनाथ के दस से बारह चूज़ों का भी का पालन किया जाता है,  जो ढाई महीने के बाद बेचने के योग्य हो जाते हैं.

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वहीं रिसर्च वैज्ञानिकों की माने तो दिल और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ एक बढ़िया दवा है, इसके अलावा इसमें विटामिन बी1 बी2, बी6 और बी12 प्रचुर मात्रा में मिलता है. इतना ही नहीं इसका मांस खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है. उन्होने बताया कि कड़कनाथ खाने के शौकीन लोगों को कांकेर जाने की जरुरत न पड़े, इसलिए विभाग में इसका पालन किया जा रहा है. साथ कृषकों को भी बताया जा रहा है कि इस योजना के तहत कैसे कृषक आमदनी में बढोतरी कर सकते है. आपको बता दें कि कड़कनाथ के चूज़ा 80 रुपए का एक आता हैं, जिन्हे लगभग तीन महीने बाद 600 रुपये प्रति किलों के हिसाब से बेच दिया जाता है.

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