आप सभी को बता दें कि चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है. जी दरअसल श्रीरामनवमी के एक दिन बाद मनाई जाने वाली इस एकादशी को समस्त सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष माना जाता है. कहते हैं कामदा एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है और यह व्रत बहुत ही फलदायी है. आप सभी को बता दें कि इसे फलदा एकादशी या कामदा एकादशी भी कहा जाता है. ऐसे में इस बार यह एकदशी 4 अप्रैल को है और आज हम आपको बताने जा रहे हैं फलदा एकादशी कि सम्पूर्ण कथा जो आज के दिन जरूर सुननी चाहिए.
कथा - मान्यता के अनुसार भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नामक नाग राज करता था. इनके दरबार में गायन और वादन में निपुण किन्नर व गंधर्व रहा करते थे. एक दिन ललित नाम का गन्धर्व दरबार में गायन कर रहा था. अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई. इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ गया. इससे नाराज होकर पुण्डरीक ने ललित को राक्षस बन जाने का शाप दे दिया.
ललित के राक्षस बन जाने पर उसकी पत्नी ललिता दुःखी रहने लगी. एक दिन वन में ललिता को ऋष्यमूक ऋषि मिले. इन्होंने ललिता के दुःख को जानकर चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. ललिता ने ऋषि के बताए नियम के अनुसार व्रत पूरा किया. इसके बाद व्रत का फल अपने पति ललित को दे दिया. इससे ललित वापस राक्षस से गंधर्व रुप में लौट आया. इस व्रत के पुण्य से ललित और ललिता दोनों को उत्तम लोक में भी स्थान प्राप्त हुआ.
शुभ मुहूर्त - 6 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 38 मिनत तक 5अप्रैल को.
अवधि - 2 घंटे 30 मिनट.
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