शाजापुर: मध्य प्रदेश के शाजापुर शहर के सोमवारिया बाजार में कंस दशमी पर कंस वध कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कंस वध के पहले श्री कृष्ण तथा कंस की सेना के बीच जमकर वाकयुद्ध हुआ। श्रीकृष्ण एवं कंस के सैनिक के रूप में सजे-धजे कालाकारों ने एक-दूसरे पर तीखे व्यंग बाण चलाए। रात ठीक 12 बजते ही प्रभु श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया। तत्पश्चात, गवली समाज के लोग कंस के पुतले को लाठी-डंडों से पीटते तथा जमीन पर घसीटते हुए नई सड़क की तरफ ले गए।
''अरे! कन्हैया सुन...करते हैं लूटमार हम सिपाही कंस के...करते हैं भ्रष्टाचार हम सिपाही कंस के...खा जाएंगे तुझे कच्चा और डकार तक नहीं लेंगे...ऐसे खतरनाक हैं हम सिपाही कंस के...'' ऐसे वाकयुद्ध के साथ देवता तथा दानव तलवारें लहराते और डरावने अट्टाहास करते हुए शहर की सड़कों पर निकले। विशेष बात यह है कि इस युद्ध में खून की नदियां नहीं, बल्कि हंसी के फव्वारे छूटते हैं। संवादों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं राजनीति पर भी व्यंग्य होते हैं। 3 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजों को भी संवाद में सम्मिलित किया गया।
गोवर्धननाथ मंदिर के मुखिया दिवंगत मोतीराम मेहता ने लगभग 270 साल पहले मथुरा में कंस वधोत्सव कार्यक्रम होते देखा तथा फिर शाजापुर में वैष्णवजन को अनूठे आयोजन के बारे में बताया। इसके बाद से ही परंपरा का आरम्भ हो गया। लगभग 100 सालों तक मंदिर में ही आयोजन होता रहा, किन्तु जगह की कमी के चलते इसे नगर के एक चौराहे (जिसे अब कंस चौराह नाम दिया जा चुका है) पर किया जाने लगा। इस कंस वध को देखने शहर ही नहीं, बल्कि आसपास के लोग भी सम्मिलित हुए।
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