आज जरूर पढ़े कंस वध की यह कथा

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भगवान श्रीकृष्ण (ShriKrishna) ने अपने ही मामा कंस का वध (Kans Vadh) कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन किया था। जी हाँ और इसी के चलते इस तिथि को कंस वध के तौर पर भी जाना जाता है। आप सभी को बता दें कि कृष्ण जी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक मामा कंस का वध भी है। जी हाँ और आपको यह भी पता ही होगा कि भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन लीलाओं से भरा हुआ है। जी दरसल उनके जन्म से लेकर अंतिम वक्त तक सभी कुछ उनकी लीला ही नजर आती है। जी दरअसल कृष्ण जी का जन्म भी विकट परिस्थितियों में हुआ था जिसकी वजह दुष्ट मामा कंस ही था।

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हालाँकि एक भविष्यवाणी की वजह से राजा कंस अपने ही भांजे श्रीकृष्ण को मारना चाहता था, इसके लिए उसने कई प्रयास भी किए लेकिन आखिर में उसका अंत भगवान श्रीकृष्ण के हाथों ही हुआ। आपको बता दें कि कंस के आठ भाई और पांच बहनें थीं। वह भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। उसकी बहनों का विवाह वसुदेव जी के छोटे भाईयों से हुआ था। जी हाँ और कंस इतना दुष्ट था कि शूरसेन जनपद का राजा बनने के लिए उसने अपने ही पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था। कहा जाता है कंस का अपनी चचेरी बहन देवकी से काफी स्नेह था, लेकिन एक भविष्यवाणी ने सबकुछ बदल दिया।

भविष्यवाणी में देवकी के 8वें पुत्र के हाथों कंस वध की बात कही गई थी। वहीं मौत की भविष्यवाणी सुन कंस बौखला गया और उसने अपनी ही बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया था। जी दरसल कंस ने कारागृह में जन्में देवकी के 6 पुत्रों को मार दिया था। उसके बाद भगवान विष्णु माता देवकी के गर्भ में स्वय आकर उनकी 8वीं संतान बने। भविष्यवाणी में 8वें पूत्र द्वारा ही वध करने का कहा गया था। वहीं जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो कारागार खुद ब खुद खुल गए और सभी सैनिक सो गए। वसुदेव जी बालकृष्ण को नंदबाबा के यहां पहुंचाने में सफल हुए।

उसके बाद कंस को जब श्रीकृष्ण जी के गोकुल में होने की सूचना मिली तो उसने उन्हें मारने के लिए कई प्रयास किए। कई असुरों को भेजा लेकिन कृष्ण लीला के आगे उसकी एक भी नहीं चली। कहा जाता है एक बार कंस ने कृष्णजी को मारने के लिए अपने दरबार में आमंत्रित किया। यहीं पर कृष्णजी ने मामा कंस का वध कर प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था।

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