आप सभी को बता दें कि हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों में से एक कर्ण वेध संस्कार का उल्लेख मिलता है और इसे उपनयन संस्कार से पहले किया जाता है. जी हाँ, तो आज हम आपको बताते हैं कर्ण वेध संस्कार के बारे में कुछ ख़ास बातें.
क्यों करते हैं कर्ण वेध संस्कार- जी दरअसल कान छिदवाने के कई कारण होते हैं और इस संस्कार के अनुसार दो लाभ होते हैं पहले यह कि राहु और केतु संबंधी प्रभाव समाप्त होता है और दूसरा यह कि संतान स्वस्थ रहे, उन्हें रोग और व्याधि परेशान नहीं कर सकती. सावधानी- कहा जाता है कान विधिपूर्वक ही छिदवाएं अन्यथा आपको नुकसान भी हो सकता है, वैसे आजकल लोग एक ही कान में चार-चार छेद करने लगे हैं जो कि अनुचित है. वहीं कुछ लोग एक ही कान छिदवाते हैं तो कुछ लोग दोनों कान छिदवाते हैं लेकिन नियम के अनुसार दोनों ही कान छिदवाने चाहिए.
कब करना चाहिए यह संस्कार- कहा जाता है यह बालक के जन्म से दसवें, बारहवें, सोलहवें दिन या छठे, सातवें आठवें महीने में किया जा सकता है और बालक शिशु का पहले दाहिना कान फिर बायां कान और कन्या का पहले बायां कान फिर दायां कान छेदना चाहिए. किस मुहूर्त में करना चाहिए यह संस्कार- नक्षत्र- इस संस्कार के लिए मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा और पुनर्वसु अति शुभ माने जाते हैं. इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में आप यह संस्कार कर सकते हैं. इसी के साथ वार- कर्ण वेधन के दिन सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार होना चाहिए. इस दौरान तिथि कर्ण वेध संस्कार के लिए चतुर्थ, नवम एवं चतुर्दशी तिथियों एवं अमावस्या तिथि को छोड़कर साड़ी तिथियां शुभ होती है.
इसके लिए लग्न- वैसे तो सभी लग्न जिसके केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम) एवं त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में शुभ ग्रह हों तथा (तृतीय, षष्टम, एकादश) भाव में पापी ग्रह हों तो वह लग्न उत्तम कहा जाता है. वहीं यहां वृष, तुला, धनु व मीन को विशेष रूप से शुभ माना जाता है और यदि बृहस्पति लग्न में हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति कही जाती है. इस दौरान निषेध- खर मास, क्षय तिथि, हरिशयन (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक जन्म मास (चन्द्र मास) सम वर्ष (द्वितीय, चतुर्थ) इत्यादि को कर्ण-वेध संस्कार में त्याज्य किया जाना चाहिए. चन्द्र शुद्धि एवं तारा शुद्धि अवश्य की जानी चाहिए.
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