बैंगलोर: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने हालिया आदेश में कहा है कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी अमान्य मानी जाएगी, फिर चाहे इसे इस्लाम धर्म ने अपने नियमों में इस शादी को जायज ही क्यों न ठहराया हो. अदालत ने कहा कि ऐसा एसलिए क्योंकि नाबालिग रहने पर विवाह कराना, ‘यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम’ (POCSO) के प्रावधानों का उल्लंघन है. एक नाबालिग मुस्लिम लड़की के साथ निकाह करने वाले एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राजेंद्र बादामीकर की उच्च न्यायालय की बेंच ने इस दलील को खारिज कर दिया कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की यौवन (Puberty) हासिल करने पर या 15 साल की होने पर निकाह करती है, तो ये बाल विवाह निषेध अधिनियम का उल्लंघन नहीं होगा. अदालत ने कहा कि निर्धारित आयु से कम उम्र में शादी करना ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम’ के उल्लंघन के दायरे में ही आएगा.
हाई कोर्ट ने कहा कि POCSO एक्ट एक स्पेशल एक्ट है, इसलिए ये प्रत्येक व्यक्तिगत कानून को ओवरराइड करता है. पॉक्सो अधिनियम के अनुसार, किसी भी महिला के यौन गतिविधियों में शामिल होने की कानूनी आयु 18 वर्ष है. 18 वर्ष से पहले विवाह एक गैर-कानूनी गतिविधि है. बता दें कि इस संबंध में 16 जून को केस दर्ज किया गया था, जब बेंगलुरु के एक हेल्थ केयर सेंटर में जांच के बाद एक 17 वर्षीय लड़की प्रेग्नेंट पाई गई थी. चूँकि लड़की नाबालिग थी, इसलिए स्वास्थ्य अधिकारियों ने पुलिस को सूचित किया. इसके बाद पुलिस ने इस मामले में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 (बच्ची से विवाह करने वाले वयस्क पुरुष के लिए सजा) एवं धारा 10 (बाल विवाह) और पॉस्को एक्ट की धारा 4 और 6 के तहत कार्रवाई की थी और केआर पुरम पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की थी।
जिसके बाद जमानत की मांग करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि मुस्लिम कानून के तहत यौवन हासिल करने के बाद लड़की के निकाह पर विचार किया जा सकता है और कानून में यौवन (प्यूबर्टी) की उम्र 15 वर्ष मानी जाती है. वकील ने कहा कि जैसा कि इस मामले में लड़की ने यौवन हासिल कर लिया, था यानी वह 15 साल से अधिक की हो चुकी थी, इसलिए मुस्लिम कानून के मुताबिक, वह निकाह के लिए तैयार थी और ऐसा करने से बाल विवाह पर रोक लगाने वाले एक्ट की धारा 9 और 10 के तहत कोई जुर्म नहीं हुआ. हालांकि उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि POCSO एक्ट एक स्पेशल एक्ट हैं, इसलिए ये व्यक्तिगत कानून को ओवरराइड करता है. अदालत ने आगे कहा कि इस मामले में ये स्पष्ट करने के लिए भी कोई प्रमाण नहीं था कि लड़की ने अपनी मर्जी से निकाह किया या उसने निकाह पर आपत्ति जताई थी.
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