'अगर ब्राह्मण बच्चे बिना शर्ट के स्कूल आने लगे तो..', हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट में दलील

'अगर ब्राह्मण बच्चे बिना शर्ट के स्कूल आने लगे तो..', हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट में दलील
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बैंगलोर: कर्नाटक हिजाब विवाद मामले में बुधवार (23 फरवरी 2022) को उच्च न्यायालय ने लगातार 9वें दिन सुनवाई की। इससे पहले मंगलवार को कोर्ट में एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने कहा था कि इस्लाम बगैर हिजाब के भी चल सकता है और फ्रांस की मिसाल दी थी। बुधवार की सुनवाई में दलील देने के दौरान वकील नागानंद ने याचिकाकर्ताओं के आधार कार्ड की तस्वीर अदालत के सामने रखी। उन्होंने बताया ये लोग हिजाब की पैरवी इस दिशा में नहीं कर रहे कि इन्हें हमेशा हिजाब पहनना चाहिए, यदि ऐसा होता तो आधार कार्ड में इनकी तस्वीरें हिजाब में ही होंती।

नागानंद ने अदालत को बताया कि कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया (CFI) के लोग कॉलेज में हिजाब को इजाजत दिलवाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में कॉलेजों में यूनिफॉर्म अनिवार्य की गई थी। इसके बाद से वही यूनिफॉर्म कॉलेज में पहनी गई। मगर अब CFI हिजाब के लिए लोगों को भड़का रहा है। उन्होंने बताया कि CFI ने कुछ शिक्षकों को भी इतना धमकाया है कि वो FIR दर्ज करवाने से डर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो इल्जाम लगाए जा रहे हैं कि बच्चों को डाँटा गया, धमकाया गया। नागानंद ने कहा कि शिक्षकों ने बस छात्राओं से इतना कहा कि यदि उन्होंने क्लास अटेंड नहीं की, तो उन्हें अनुपस्थित दर्शाया जाएगा। क्या ये धमकी है? उन्होंने ध्यान दिलाया कि किस तरह एक याचिकाकर्ता की माँ हलफनामे पर दस्तखत किए। नागानंद ने पुछा कि आखिर माँ को कैसे पता कि कॉलेज में क्या होता है।

मामले में दलीलें पेश करते हुए नागानंद ने कहा कि ये सब केवल अदालत का वक़्त बर्बाद करने के लिए किया जा रहा है, वो भी बेबुनियाद आरोपों पर। उन्होंने ये भी कहा कि यदि बात अनुच्छेद 25 के उल्लंघन की है तो मजहब की आजादी और अंत: करण की स्वतंत्रता एक साथ आती है। तो क्या आप ये कह रहे हैं कि यह आपके अंत:करण की आवाज है। उन्होंने ये भी बताया कि अनुच्छेद 25 (1) में जो पब्लिक ऑर्डर आता है, वह वो नहीं है जो अनुच्छेद 19 में बताया जा रहा है। उन्होने एक मिसाल देते हुए समझाया कि यदि कोई बच्चा घर में गलत व्यव्हार करे तो उसे समझाया जाएगा वो ऐसा न करे। लेकिन यदि ऐसा जारी रहता है, तो हो सकता है बच्चे को थप्पड़ भी पड़ जाए। ये अभिभावकों का अधिकार है। यही कल्पना क्लासरूम के लिए कीजिए। प्रशासन कहता है कि आप जब बच्चे को स्कूल भेजेंगे, तो शिक्षक उन्हें अनुशासन सिखाएगा। नागानंद ने उदाहरण दिया कि कुछ रूढ़िवादी ब्राहम्ण लड़के हैं, जो उपनयन संस्कार के बाद मानते हैं कि शर्ट नहीं पहननी चाहिए। यदि ये लड़के भी कहें कि ये इनका धर्म हैं और ये लोग ऐसा ही करेंगे तो क्या होगा। स्कूलों को क्लासरूम में अनुशासन कायम रखना होगा। यूनिफार्म पर 2004 से सवाल नहीं उठा। 

नागानंद ने कहा कि कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी, कॉलेज के स्थान पर काम कर रही है, ये कोई अंजान चीज नहीं हैं। वो आजाद हैं कि स्कूलों में यूनिफॉर्म पर फैसला ले सकें। ये बच्चों के लिए अच्छा भी होगा क्योंकि इससे उनके अंदर मजहबी कट्टरता से निजात मिलेगी। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि CFI इस मामले में घुसी व बच्चों और उनके अभिभावकों को भड़काया। सभी दलीलों के बीच नागानंद ने कई विदेशी घटनाओं का भी उदाहरण दिया। इसमें ईरान में शाह शासन का भी जिक्र है, जब उस देश में कोई पर्दा नहीं हुआ करता था। कई महिलाएँ ईरान से बंगलुरु आती थीं। उन्होंने कहा कि बच्चों को समझना होगा कि वो ये भेदभाव न करें। स्कूल आने के दौरान कोई धार्मिक चीज न पहनें।

वहीं, सुनवाई में वरिष्ठ वकील साजन पोवैया ने CDC के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की तरफ से कहा है कि वो नागानंद द्वारा कही गई हर बात से सहमत हैं। उन्होंने अनुच्छेदों का उदाहरण देते हुए कहा कि राज्य किसी को ये नहीं कह सकता कि वो मुस्लिम क्यों है, किन्तु राज्य किसी पहनावे पर बैन जरूर लगा सकता है। पोवैया ने बताया कि भेदभाव मिटाने के लिए यूनिफॉर्म निर्धारित की जाती है। उन्होंने पूछा कि क्या यदि हिजाब पहनने से किसी को रोका जाए तो इसका मतलब ये है कि उनके मजहब में बदलाव किया जा रहा है या ये है जो हिजाब नहीं पहनते हैं, क्या वो मजहब नहीं मानते? कोई मुस्लिम बच्चा हिजाब पहनेगा और हिंदू भगवा स्कॉर्फ तो ये दोनों ही चीजें सही नहीं हैं। आर्टिकल 25 मजहब को मानने का अधिकार देता है,  मजहबी पोषाक पहनने का नहीं। उन्होंने कहा कि वह स्टूडेंट्स को फिजिक्स, केमेस्ट्री और ज्योग्राफी नहीं पढ़ाते हुए ये नहीं कह सकते हैं कि वो लोग मजहबी कपड़ों में कक्षा में आएँ। स्कूलिंग सिर्फ शैक्षिक ही नहीं बल्कि पूरे विकास से जुड़ा हुआ है।

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