चंडीगढ़: हरियाणा में विधानसभा चुनाव 5 अक्टूबर को मतदान और 8 अक्टूबर को मतगणना के लिए निर्धारित किए गए हैं। कांग्रेस, जो दस साल बाद हरियाणा की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है, ने चुनाव में कई वादे किए हैं। हालांकि, कांग्रेस के लिए सत्ता प्राप्त करना आसान नहीं होगा, क्योंकि उसकी वादाखिलाफी की एक लंबी फेहरिस्त रही है। हरियाणा विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं, जिनमें बहुमत के लिए 46 सीटें चाहिए। कांग्रेस 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, भिवानी की सीट CPIM के लिए छोड़ दी गई है। कांग्रेस के वादे और उनकी वादाखिलाफी के इतिहास को देखते हुए, यह प्रश्न उठता है कि क्या हरियाणा की जनता कांग्रेस पर विश्वास कर उसे सत्ता सौंपेगी ?
कांग्रेस की वादाखिलाफी के दो प्रमुख उदाहरण राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में देखने को मिले हैं। राजस्थान में, कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने 26 नवंबर 2018 को एक चुनावी सभा में वादा किया था कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो किसानों के कर्ज केवल 10 दिन में माफ कर दिए जाएंगे। लेकिन, जब कांग्रेस सरकार बनी और पांच साल तक चली, सभी किसानों के कर्ज माफ नहीं हुए। इसके कारण, राजस्थान की जनता ने 2023 में कांग्रेस की सरकार को बदलकर भाजपा को सत्ता में लाया।
इसी तरह, हिमाचल प्रदेश में 2022 में कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान 10 गारंटियों की पेशकश की थी, जो सत्ता में आने के लिए उसकी मददगार साबित हुईं। प्रियंका गांधी ने वादा किया था कि उनकी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में एक लाख युवाओं को रोजगार दिया जाएगा। हालांकि, जनवरी 2023 में कैबिनेट की पहली बैठक हो गई, लेकिन रोजगार का पूरा वादा अभी भी पूरा नहीं हुआ। सरकार ने एक सब-कमेटी गठित की है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने महिलाओं को हर माह 1500 रुपये की पेंशन देने का वादा किया था। हालांकि, कांग्रेस ने योजना शुरू तो की, लेकिन इसमें एक ही परिवार के एक सदस्य को पेंशन देने की शर्त जोड़कर कई लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इसके अतिरिक्त, कांग्रेस सरकार की नीतियों के कारण, हिमाचल प्रदेश इस तरह आर्थिक संकट में घिर गया कि, सरकारी कर्मचारियों को अपनी सैलरी और वित्तीय लाभों के लिए हड़ताल करनी पड़ी। हिमाचल प्रदेश के विद्युत पेंशनर्स ने कांग्रेस सरकार को चेतावनी दी है कि अगर 31 दिसंबर तक उनके लंबित वित्तीय लाभ नहीं दिए गए, तो वे अपने बोर्ड कार्ड चुनाव आयोग को भेज देंगे।
कर्नाटक में भी कांग्रेस सरकार का रिकॉर्ड ख़राब ही दिख रहा है। राज्य आर्थिक संकट में घिरा हुआ है और कांग्रेस सरकार के आर्थिक सलाहकार बसवराज रायरेड्डी ने खुद स्वीकार किया है कि मुफ्त की गारंटियां राज्य पर बोझ बन गई हैं, जिसके कारण खज़ाना खाली हो चुका है। डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी अपने अपने क्षेत्रों में काम कराने के लिए फंड मांग रहे विधायकों से कह चुके हैं कि, अभी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं है। हालत इतनी खराब है कि, कांग्रेस सरकार ने गारंटियों को पूरा करने के लिए SC/ST फंड में से 14000 करोड़ रूपए निकाल लिए हैं। फ्री बस यात्रा के वादे ने कर्नाटक सड़क परिवहन निगम का भट्टा बिठा दिया है, 3 महीने में 300 करोड़ का घाटा हो चुका है, अब कांग्रेस सरकार 20 फीसद किराया बढ़ाने की तैयारी में है।
From 'We'll make Ballari the jeans capital' during elections to 'Power cuts hit Ballari's jeans industry hard' after elections. The mercy of the government in full display! #ElectoralPromises pic.twitter.com/5w0u6zTj4P
— Priyal Bhardwaj (@Ipriyalbhardwaj) October 25, 2023
फ्री बिजली से बेल्लारी जीन्स उद्योग को मिटटी में मिला दिया है, जिसके लिए राहुल गांधी ने 5000 करोड़ देने का वादा किया था, लेकिन अब वहां बत्ती गुल रहने लगी है और जीन्स उद्योग के कर्मी, गोवा, महाराष्ट्र जैसे पड़ोसी राज्यों में जा रहे हैं। पेट्रोल-डीजल पर सरकार 3 रूपए एक झटके में बढ़ा ही चुकी है। नंदिनी दूध, बिजली की दरें भी बढ़ाई जा चुकी हैं। इन सबके बावजूद कांग्रेस सरकार बुरी तरह घोटालों में भी फंसी हुई है। MUDA जमीन घोटाला, वाल्मीकि घोटाला आदि में सीधे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर इल्जाम लगा है। अब कांग्रेस हाईकमान वहां सीएम बदलने पर विचार कर रहा है।
तेलंगाना सरकार ने SC-ST कल्याण के फंड पर चलाई कैंची।
— Prashant Umrao (@ippatel) July 26, 2024
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट 36% बढ़ाया और SC ST के कल्याण के लिए बजट में पैसे किए कम। pic.twitter.com/jNWGsuAELX
कांग्रेस पर एक और बड़ा आरोप शुरू से लगते रहा है, वो है तुष्टिकरण का। इसका उदाहरण भी समय समय पर कांग्रेस शासित राज्यों में दिखाई देता रहता है। तेलंगाना में 2023 में ही कांग्रेस ने अपनी पहली सरकार बनाई, जिसका पहला बजट ही विवादित रहा। इस बजट में तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने अनुसूचित जाति (SC) विकास विभाग के बजट को पिछले साल 21,072 करोड़ रूपए से घटाकर 7,638 करोड़ रुपया कर दिया है। वहीं, आदिवासी कल्याण विभाग (ST) का आवंटन 4,365 करोड़ रुपया से घटकर 3,969 करोड़ रुपया कर दिया गया है। दूसरी तरफ अल्पसंख्यक समुदाय का बजट 2,200 करोड़ से बढ़ाकर 3,003 करोड़ कर दिया गया है। हैरानी की बात ये है कि, मोदी सरकार ने इस साल देशभर के अल्पसंख्यकों के लिए 3183 करोड़ आवंटित किए हैं, जो तेलंगाना के बजट के लगभग बराबर ही हैं। लेकिन क्या देश में और तेलंगाना में अल्पसंख्यकों की आबादी बराबर है ? ऐसा भी नहीं है कि केंद्र ने अल्पसंख्यकों का बजट घटाया हो, उल्टा गत वर्ष की तुलना में 574.31 करोड़ बढ़ाया ही है।
तेलंगाना सरकार की इन नीतियों की सोशल मीडिया पर भी काफी आलोचना हुई है, क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पूरे चुनावों के समय संविधान हाथ में लेकर, SC/ST और OBC को हक देने का वादा किया था। लेकिन हुआ क्या, SC/ST का बजट घटा दिया गया, OBC में से 4 फीसद आरक्षण अल्पसंख्यकों को दे दिया गया, वो भी सिर्फ एक अल्पसंख्यक समुदाय को। शायद ये ही तमाम कारण हैं कि कांग्रेस की सरकारें राज्यों में रिपीट नहीं होती, जहाँ एक कार्यकाल हो जाता है, वहां की जनता उसे हटा देती है। वहीं, अब हरियाणा में ये देखना दिलचस्प होगा कि वहां की जनता क्या चुनती है ?
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