श्रीनगर: कश्मीर के कठुआ जिले में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच एक मुठभेड़ में हेड कांस्टेबल बशीर अहमद ने वीरता का अद्वितीय प्रदर्शन करते हुए अपनी जान की आहुति दी। उन्होंने अपने शौर्य से न केवल देश की सुरक्षा की, बल्कि मुठभेड़ में एक कट्टर पाकिस्तानी आतंकवादी को भी ढेर कर दिया। बशीर अहमद ने देशवासियों के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, जिससे जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों का मनोबल ऊंचा हुआ। इस मुठभेड़ में दो अन्य पुलिस अधिकारी घायल हुए, लेकिन उनकी स्थिति अब स्थिर है।
कल ही आतंकियों का मुकाबला करते हुए जम्मू कश्मीर पुलिस के कांस्टेबल बशीर अहमद शहीद हुए
— ????????Jitendra pratap singh???????? (@jpsin1) September 30, 2024
कश्मीर में किसी ने उन आतंकियों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं किया जिन्होंने उनके ही अपने भाई बेटा बशीर अहमद को शहीद किया
लेकिन वह दो दिन से आतंकी नसरुल्लाह के मौत पर प्रदर्शन कर रहे हैं
सोचिए… pic.twitter.com/T9DMPtzrm9
हालांकि, बशीर अहमद की शहादत पर महबूबा मुफ्ती और अन्य कश्मीरी नेताओं का कोई ट्वीट या शोक संदेश नहीं आया। न ही कश्मीर के मुस्लिम समुदाय की तरफ से कोई विरोध मार्च या श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तब और स्पष्ट होती है जब देखा जाता है कि कश्मीर के कुछ हिस्सों में हजारों की संख्या में लोग सड़क पर उतरे, लेकिन उनका शोक बशीर अहमद के लिए नहीं, बल्कि लेबनानी आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के सरगना हसन नसरल्लाह की मौत पर था। यह विरोधाभास और चिंता का विषय बन जाता है कि जो कश्मीरी अपने ही इलाके के एक बहादुर जवान की शहादत पर चुप्पी साधे रहे, वही लोग एक आतंकवादी की मौत पर मातम मना रहे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी मातम मनाया गया, महिला-पुरुष यहाँ तक की बच्चे तक, नसरल्लाह की तस्वीर लेकर सड़कों पर उतरे, और आतंकी नसरल्लाह को शहीद बताते हुए मुस्लिमों ने 3 दिन के शोक का ऐलान किया, बेहतर होता ये शोक आतंकी की जगह, शहीद कांस्टेबल बशीर अहमद के लिए रखा जाता।
कल जम्मू कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए कांस्टेबल बशीर अहमद देश के लिए कुर्बान हुए
— Deepak Sharma (@SonOfBharat7) September 30, 2024
क्या इनके लिए एक मुसलमान घर से निकला ?
क्या इनकी शहादत पर किसी को आपने मातम मनाते देखा..
क्या इनके लिए किसी शिया सुन्नी ने छाती पीटी
ज़ब ये बशीर अहमद जैसे राष्ट्रभक्त मुस्लिम सैनिक से नफरत… pic.twitter.com/36H3k7T8qM
हिजबुल्लाह का प्रमुख हसन नसरल्लाह, जो कि 'सीरिया का कसाई' के नाम से कुख्यात था, इजरायली रक्षा बलों द्वारा मारा गया। यह घटना हजारों किलोमीटर दूर लेबनान में हुई थी, लेकिन कश्मीर में इसका असर कुछ ऐसा हुआ कि हज़रों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर उतर आए। उन्होंने नसरल्लाह की तस्वीरें हाथों में थामे इजरायल विरोधी नारे लगाए, और कुछ नेताओं ने इसे 'मुस्लिम उम्माह' की एक बड़ी क्षति के रूप में पेश किया। यहाँ तक कि एक वीडियो में एक नाबालिग लड़की यह कहते हुए भी दिखी कि "हर घर से नसरल्लाह निकलेगा," यानी आतंकवाद को और बढ़ावा दिया जाएगा।
"आपने एक हिजबुल्लाह चीफ को मारा है, हर घर से हिजबुल्लाह निकलेगा"- ये भारत के जम्मू कश्मीर में एक बच्ची बोल रही है
— Pratyush singh (@PratyushSinghKr) September 29, 2024
नसरुल्लाह की मौत के बाद प्रोटेस्ट हो रहा है #Nasrallah pic.twitter.com/qAJ1mPhksF
इससे यह सवाल उठता है कि आखिर भारत का मुसलमान किस दिशा में जा रहा है? जो अपने ही कश्मीरी भाई, हेड कांस्टेबल बशीर अहमद की शहादत का सम्मान नहीं कर पाए, उन्हें एक दूर देश के आतंकवादी की मौत पर शोक मनाने की क्या जरूरत है? क्या यह एक मजहबी पूर्वाग्रह है, जो कश्मीरी मुसलमानों को हिजबुल्लाह जैसे आतंकियों को अपना नायक मानने पर मजबूर कर रहा है?
यह सोचने वाली बात है कि आखिर क्यों भारत के मुस्लिम समाज में अब्दुल कलाम, अशफाकउल्ला खान, और बशीर अहमद जैसे सच्चे देशभक्तों की बजाय बुरहान वानी, हिजबुल्लाह और नसरल्लाह जैसे आतंकवादी हीरो बनते जा रहे हैं। जब यही लोग कहते हैं कि उनकी देशभक्ति पर शक ना किया जाए, तो यह कैसे संभव है? अगर एक बड़ा तबका आतंकियों को अपना नायक मानेगा, तो निश्चित रूप से यह सवाल उठेगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसके पीछे मजहबी कारण हैं, जो कश्मीरी मुसलमान बशीर अहमद की शहादत की जगह नसरल्लाह की मौत को प्राथमिकता दे रहे हैं?
श्रीनगर शहर और बडगाम जिले के विभिन्न हिस्सों में हजारों लोग इजरायली हवाई हमलों में #हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की हत्या के विरोध में सड़कों पर।
— Ankit Kumar Avasthi (@kaankit) September 29, 2024
इतनी बड़ी संख्या में कश्मीर की आम जनता को एक आतंकवादी संगठन और मारे गए आतंकवादी, हसन नसरल्लाह के समर्थन में आते देखना बेहद निराशाजनक… pic.twitter.com/2O4pAfpB6y
यह घटनाक्रम भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के लिए गंभीर चिंता का विषय है। एक ओर देश के सपूत अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं, और दूसरी ओर, उनके ही समुदाय के लोग आतंकवादियों के लिए मातम मना रहे हैं। अगर इस मानसिकता में बदलाव नहीं हुआ, तो यह देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। बशीर अहमद जैसे वीरों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता, और ऐसे वीर जवानों के सम्मान में हर भारतीय को खड़ा होना चाहिए। वहीं, आतंकवाद को नायक मानने की प्रवृत्ति को चुनौती देना जरूरी है, ताकि देश की युवा पीढ़ी सही दिशा में आगे बढ़ सके।
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