श्रीनगर: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं और सिखों की हत्याओं ने एक बार फिर 90 के दशक की भयावह तस्वीर को लोगों के जहन में ताजा कर दिया है। मृतकों के घरों में जहाँ गम का माहौल है, वहीं अन्य गैर-मुस्लिम या तो घर में कैद हो गए हैं या फिर कश्मीर छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। शेखपुरुरा में दर्जनों कश्मीरी पंडित अपने घरों को छोड़ जाते नज़र आए हैं। वहीं, कुछ इलाकों में कश्मीरी पंडित घर से बाहर निकलने से भी कतरा रहे हैं। कुछ तो ऐसे हैं जिन्होंने 30 वर्ष पूर्व भी अपने घर को नहीं छोड़ा था, किन्तु ताजा घटनाओं ने उन्हें भयभीत कर दिया है।
दूसरी तरफ बाजार पर भी इस खौफ का असर नज़र आया। दो शिक्षकों के क़त्ल के बाद शाम को मार्केट पूरा बंद रहा। जिन्होंने हिम्मत करके दुकान खोली, वो भी शाम तक बंद करके घर लौट गए। घाटी के हिंदुओं और सिखों में पसरे भय को देखते हुए प्रशासन ने 10 दिन का अवकाश दिया है, ताकि वह हालात सामान्य होने तक या तो अपनी कालोनियों में रहें या फिर कश्मीर से बाहर जम्मू या किसी अन्य शहर में अपने परिवार वालों के साथ रहें। पुलिस प्रत्येक स्कूल और विभाग से गैर-मुस्लिम कर्मचारीयों को निकाल रही है और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने का प्रबंध किया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले गैर-मुस्लिम कर्मचारियों को आर्मी केंट या अन्य सुरक्षित जगहों पर भेजा जा रहा है। पूरे कश्मीर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। हर जगह तलाशी ली जा रही है। गैर-मुस्लिम फील्ड ड्यूटी से हटा दिए गए हैं। प्रत्येक विभाग को इस संबंध में सूचना भेजी गई है और निर्देश दिए गए हैं कि गैर-मुस्लिम अपने घर के अंदर ही रहें। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स, 23 परिवारों के कश्मीर से जम्मू पलायन करने का दावा कर रही है। मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए प्रोफेसर हरि ओम ने कहा कि कश्मीर में 1990 जैसा ही मंज़र दिखने लगा है। लगभग दो दर्जन परिवार कश्मीर से बीती रात पलायन कर गए हैं। इनमें कई सरकारी कर्मचारी भी हैं। उन्होंने बताया कि आतंकियों की कश्मीर से गैर मुस्लिमों को फिर से खदेड़ने की साजिश है।
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