नवरात्रि का पर्व हर साल धूम धाम से मनाया जाता है और इस साल शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हुई है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक कात्यायनी पीठ के बारे में। यह पीठ भगवान कृष्ण की नगरी में वृन्दावन में स्थित है। कहा जाता है इस मंदिर का नाम प्राचीन सिद्धपीठ में आता है। ऐसा भी बताया जाता है कि यहां माता सती के केश गिरे थे और इसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। ऐसा कहते है कि राधारानी ने भी श्रीकृष्ण को पाने के लिए इस शक्तिपीठ की पूजा की थी।
जी हाँ और देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के 22वें अध्याय में उल्लेख किया है- कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
अर्थ- हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र हमें पति के रूप में प्राप्त हों। हम आपकी अर्चना एवं वंदना करते हैं।
वहीं गीता के अनुसार, राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता ने उन्हें वरदान दे दिया लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। वहीं इसके लिए भगवान कृष्ण ने वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया। उसके बाद से आज तक यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां नवरात्र के मौके पर मनचाहा वर और वधु प्राप्त करने के लिए माता का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
ऐसी मान्यता है जो भी भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करता है, उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है। कहा जाता है भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। जी हाँ और उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था। हर साल नवरात्र के मौके पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है।
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