देश के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम में भगवान शिव लिंग रूप में विराजमान हैं। जी हाँ और यहां हर साल मई में पट खुलने के बाद बड़ी संख्या में शिव भक्त आते हैं। आप सभी जानते ही होंगे अब बद्रीनाथ धाम के भी पट खुल चुके हैं। जी हाँ और शास्त्रों के अनुसार, बद्रीनाथ धाम के दर्शन केदारनाथ यात्रा के बिना अपूर्ण माने जाते हैं। केवल यही नहीं बल्कि यह भी मान्यता है कि केदारनाथ यात्रा के बिना कोई भी व्यक्ति बद्रीनाथ धाम की यात्रा कर ही नहीं सकता है। अब हम आपको बताते हैं क्या है केदारनाथ धाम का बद्रीनाथ धाम से नाता?
जी दरअसल केदारनाथ धाम को लेकर यह मान्यता है कि यहां पर भगवान से भक्तों का सीधा मिलन होता है। जी हाँ और पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान भोलेनाथ ने पांडवों को इस स्थान पर दर्शन देकर वंश व गुरु हत्या के पाप से मुक्त किया था। उसके बाद 9वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य केदारनाथ धाम से सशरीर स्वर्ग गए थे। केदारनाथ धाम में यह उल्लेख मिलता है कि कोई व्यक्ति भगवान केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा सफल नहीं होती।
इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले नर नारायण ऋषि ने केदार श्रृंग पर तपस्या की थी। जी हाँ और भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी प्रार्थना के अनुसार हमेशा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वर दिया था।
भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए थे- केदारनाथ धाम को लेकर एक अन्य कथा भी प्रचलित है कि भगवान शिव ने पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें भ्रातृहत्या से मुक्त कर दिया था। मान्यता है कि पांडव महाभारत में विजयी होने पर भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। जिसके लिए उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद चाहिए था, परंतु भगवान उनसे रुष्ट थे। फिर पांडव भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए केदार पहुंचें। इसके बाद भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया अन्य पशुओं के बीच चले गए। वहीं उसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण कर अपने पैर दो पहाडों पर फैला दिए। इस दौरान भीम के पैर के नीचे से सारे पशु निकल गए परंतु बैल बने भगवान शिव उनके पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद उस बैल पर भीम बलपूर्वक झपटे, लेकिन वो बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा।
इसके बाद उस बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग भीम ने पकड़ लिया। फलस्वरूप भगवान शिव पांडवों की भक्ति दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हुए उनको दर्शन देकर पाप मुक्त किया। मान्यता है कि तब से बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में भगवान शिव केदारनाथ धाम में पूजे जाते हैं।
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