'वक्फ' के बचाव में केरल सरकार, संशोधन नहीं मंजूर, केंद्र के खिलाफ पारित करेगी प्रस्ताव

'वक्फ' के बचाव में केरल सरकार, संशोधन नहीं मंजूर, केंद्र के खिलाफ पारित करेगी प्रस्ताव
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कोच्ची: केरल सरकार वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करने की तैयारी कर रही है। यह विधेयक वर्तमान में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के विचाराधीन है और लोकसभा में पेश किया गया था। केंद्र सरकार का कहना है कि 1995 के वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन मस्जिदों और मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने के लिए हैं। हालांकि, विपक्ष और मुस्लिम नेताओं ने इस विधेयक की आलोचना करते हुए कहा है कि यह मुस्लिम समुदाय की संपत्ति को 'जब्त' करने का असंवैधानिक प्रयास है। सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली पिनाराई विजयन सरकार इस मुद्दे पर विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने की योजना बना रही है, क्योंकि सत्र चल रहा है।

वक्फ संशोधन विधेयक, भाजपा के नेतृत्व वाली NDA सरकार द्वारा वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और प्रबंधन में सुधार की एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है। विधेयक में कई सुधार प्रस्तावित हैं, जिनमें राज्य वक्फ बोर्डों के अलावा एक केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन शामिल है। इस परिषद में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों को भी जगह देने का प्रावधान है। हालांकि, एक प्रावधान के तहत जिला कलेक्टरों को यह अधिकार देने का प्रस्ताव है कि वे तय कर सकें कि कोई संपत्ति वक्फ है या सरकारी भूमि। इस प्रावधान की कड़ी आलोचना हुई है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 8 अगस्त को लोकसभा में इस विधेयक का विरोध करते हुए इसे "संविधान पर एक मौलिक हमला" और "कठोर कानून" बताया। उन्होंने कहा कि सरकार लोगों की धार्मिक भावनाओं और आस्था पर हमला कर रही है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठनों ने सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग की है और इसे वक्फ संपत्तियों को हड़पने की साजिश बताया है।

केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना है और आम मुसलमान इसका समर्थन करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग वक्फ बोर्डों पर नियंत्रण कर रहे हैं, और यह विधेयक आम मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए लाया गया है। हालाँकि, भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस कानून का उद्देश्य मस्जिदों के कामकाज में हस्तक्षेप करना नहीं है, बल्कि पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना है।

क्या है वक्फ एक्ट और किसने दी इसको असीमित ताकत ?

वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले। 

 

यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन। हर साल वक्फ का सर्वे होता है और उसकी संपत्ति बढ़ जाती है, पूरे के पूरे गांव को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया जाता है और कहीं सुनवाई भी नहीं होती।  गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे।  

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