'पैगम्बर' के नाम पर PFI ने काट दिया था हाथ, अब प्रोफेसर ने बाएं हाथ से आत्मकथा लिख जीता पुरस्कार

'पैगम्बर' के नाम पर PFI ने काट दिया था हाथ, अब प्रोफेसर ने बाएं हाथ से आत्मकथा लिख जीता पुरस्कार
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कोच्ची: केरल में जिस प्रोफेसर का दायाँ हाथ कट्टरपंथियों ने काट डाला था, अब उन्होंने बाएँ हाथ से अपनी आत्मकथा लिखकर पुरस्कार हासिल किया है। प्रोफेसर का नाम टी जे जोसेफ है, जिनकी आत्मकथा को केरल साहित्य अकादमी द्वारा 2020 की बेस्ट बायोग्राफ़ी का पुरस्कार मिला है। मलयालम में ‘अट्टूपोकथा ओरमाकल’ नाम से लिख गई अपनी आत्मकथा में प्रोफेसर ने हाथ काटे जाने के पहले के अपने जीवन के बारे में विस्तार से बताया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 4 जुलाई 2010 को कट्टरपंथी इस्लामी पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) के चरमपंथियों ने ईशनिंदा का आरोप लगाकर प्रोफेसर का दायाँ हाथ काट डाला था। उस वक़्त प्रोफेसर जोसेफ लडुक्की जिले के थोडूपुझा क्षेत्र के न्यूमैन कॉलेज में पढ़ाते थे। उनके द्वारा एग्जाम के लिए एक प्रश्न पत्र में इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के नाम का इस्तेमाल करने पर कट्टरपंथी आगबबूला हो गए थे। वह प्रश्न पत्र एक पागल और भगवान के बीच हुई चर्चा को लेकर था। प्रश्न प्रसिद्ध लेखक पीटी कुंजू मोहम्मद की पुस्तक से लिया गया था। कट्टरपंथियों द्वारा हंगाम करने पर प्रोफेसर जोसेफ ने सफाई भी दी थी। उन्होंने कहा था कि पेपर में पागल आदमी का कोई नाम नहीं था और मोहम्मद नाम एक पुस्तक के लेखक पीटी कुंजू मोहम्मद की वजह से दिया गया था।

हालाँकि, उनकी सफाई से कट्टरपंथियों को कोई फर्ज नहीं पड़ा और उन्होंने प्रोफेसर का हाथ काट डाला। प्रोफेयर पर हमला करने वाले मुख्य हमलावर का नाम नजीब था। साल 2015 में इस मामले में PFI के 13 सदस्यों को NIA अदालत ने सजा सुनाई थी। जब प्रोफेसर जोसेफ पर हमला हुआ, उस समय उनकी आयु 52 वर्ष थी। हमले से हुए घाव से उन्हें उबरने में बहुत वक़्त लगा, मगर उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा और दांया हाथ कटने के बाद लम्बे समय तक बाएँ हाथ से लिखने का अभ्यास करते रहे। आखिरकार, करीब 10 वर्षों की मेहनत के बाद उन्होंने बाएँ हाथ से लिखकर अपनी बायोग्राफी प्रकाशित की।

अपनी इस बायोग्राफी में प्रोफेसर टी जे जोसेफ ने बताया है कि जब वे कट्टरपंथियों के निशाने पर थे, तो कैसे कॉलेज प्रशासन से लेकर उनके तमाम सहयोगियों और यहाँ तक कि चर्च ने भी उनसे किनारा कर लिया था और उसी डिप्रेशन में उनकी पत्नी ने भी ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्होंने बताया कि, 'कॉलेज के प्रिंसिपल और मैनेजमेंट ने शुरु-शुरू में मेरा साथ दिया, मगर समय के साथ उनके विचार बदल गए। ये जानने के बाद भी कि मैं निर्दोष हूँ, कॉलेज ने मुझ पर ईशनिंदा का इल्जाम मढ़कर, मुझे निलंबित कर दिया और बाद में नौकरी से निकाल दिया गया। चर्च ने मेरे परिवार को बहिष्कृत कर दिया।'

बता दें कि जोसेफ़ की आत्मकथा अंग्रेजी में भी ‘ए थाउजेंड कट्स’ नाम से प्रकाशित हुई है। प्रोफेसर जोसेफ ने ‘भ्रान्तनु स्तुति’ नाम से दूसरी पुस्तक भी प्रकाशित की है। यह किताब उनके द्वारा तैयार किए गए प्रश्न पत्र में उसी पागल आदमी पर आधारित है। फिलहाल प्रोफसर विदेश दौरे पर हैं।

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