सोनाक्षी सिन्हा, वरुण शर्मा और रैपर बादशाह की फिल्म 'खानदानी शफाखाना' हाल ही में रिलीज़ हुई है जिसके लिए फैंस काफी इंतज़ार कर रहे थे. निर्देशक के रूप में अपना डेब्यू करनेवाली शिल्पी दासगुप्ता ने भी सेक्स क्लिनिक के बहाने सेक्स जैसे टैबू पर 'बात तो करो' टैगलाइन के साथ थोड़ी कॉमेडी भी देने की कोशिश की है. तो आइये जानते हैं इस फिल्म की क्या है कहानी.
कलाकार : सोनाक्षी सिन्हा,बादशाह,वरुण शर्मा,प्रियांश जोरा,अन्नू कपूर,नादिरा जहीर बब्बर,कुलभूषण खरबंदा
निर्देशक : शिल्पी दासगुप्ता
मूवी टाइप : Comedy,Drama
अवधि : 2 घंटा 33 मिनट
रेटिंग : 2.5/5
कहानी: फिल्म की कहानी छोटे शहर होशियारपुर में रहने वाली बॉबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) की है , जो मेडिकल सेल्स रिप्रजेंटेटिव है. इसके घर पर वह मां (नादिरा जहीर बब्बर) और निकम्मे भाई भूषित बेदी (वरुण शर्मा) की हैं जिनकी जिम्मेदारियों से वो भरी हुई है. उसकी बहन की शादी के लिए बॉबी के परिवार ने चाचा से मोटी रकम उधार ली थी और उधार वापस न कर पाने की सूरत में चाचा उनका पुश्तैनी घर हड़पने की फिराक में है. इसके बाद एक ऐसी स्थिति आती है, जहां बॉबी के मामा (कुलभूषण खरबंदा) अपने पुश्तैनी सेक्स क्लीनिक खानदानी शफाखाना और लाखों की संपत्ति को बॉबी के नाम कर जाते हैं, मगर इस शर्त के साथ कि बॉबी मामाजी के पुराने मरीजों का इलाज करे और 6 महीने तक सेक्स क्लिनिक को सफलतापूर्वक चलाए. यहीं से कहानी में मज़ेदार मोड़ आता है.
इसके बाद कर्ज चुकाने और अपने घर को बचाने के लिए बॉबी लड़की होकर सेक्स क्लीनिक चलाने की चुनौती को स्वीकार तो कर लेती है. मगर उसके बाद उसे घर और समाज से विरोध और घृणा का सामना करना पड़ता है. इस काम में उसे काफ़ि परेशानी आती है और समाज ले लोग उस पर उंगली भी उठाते हैं. बॉबी बेदी जैसी छोटे शहर की लड़की जब सेक्स, शीघ्रपतन, स्तंभन, स्खलन, गुप्त रोग जैसे विषयों पर खुलकर बात करती है, तो उसे सभी उसे अजीब नजरों से देखते हैं. इस चुनौती में उसका साथ देता है, क्लीनिक के पास लेमन बॉय के रूप में मशहूर प्रियांश जोरा.
रिव्यू: इसमें कोई दो राय नहीं कि फर्स्ट टाइम निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता ने एक बहुत ही बोल्ड और गुप्त समझे जानेवाले सब्जेक्ट के इर्दगिर्द कॉमिडी बुनी है. हालाँकि कहानी कुछ-कुछ सच्ची भी है जिसके बारे में हर किसी को बात करनी चाहिए. मगर कहानी की समस्या यह है कि यह बहुत ही सुस्त गति से आगे बढ़ती है. फिल्म अपने असरकारक पंचेज से और कॉमिक हो सकती थी. वहीं फिल्म बीच-बीच में थोड़ी घुम भी जाती है जिससे आप भटक जाते हैं. लेकिन छोटे शहर के माहौल और मानसिकता को निर्देशक सटीक रूप से दर्शाने में कामयाब रही हैं. फिल्म का क्लाइमेक्स मजेदार है.
एक्टिंग : सोनक्षी ने बेहतरीन काम किया. बॉबी बेदी के रूप में सोनाक्षी सिन्हा ने गजब का काम किया है. उन्होंने अपने किरदार को अपने चेहरे के विभिन्न भावों से सशक्त बनाया है. सेक्स जैसे टैबू के बारे में बात करने वाली बॉबी की मासूमियत बरक़रार रखी. सोनाक्षी के लव इंट्रेस्ट के रूप में नवोदित प्रियांश जोरा क्यूट लगे हैं, मगर उनका रोल ज्यादा बड़ा नहीं था. रैपर बादशाह भी ठीक ठाक रहे. एक लंबे अरसे बाद नादिरा बब्बर को परदे पर देखना अच्छा लगा. अन्नू कपूर और कुलभूषण खरबंदा ने अपने चरित्रों के साथ पूरा इंसाफ किया है.
म्यूजिक : कई संगीतकारों के बाद भी गाने 'कोका', 'शहर की लड़की' और 'सांस तो ले ले' जैसे गाने ही ठीकठाक रहे जिसे लोगों ने कुछ खास पसंद नहीं किया.
क्यों देखें: इम्पोर्टेन्ट टॉपिक के साथ कॉमिडी के शौकीन हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं. जिससे जानकारी भी मिलेगी.
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