उज्जैन : खुद ही अपने हाथ से अपने आप को तिलांजलि दे दी। खुद ही अपना पिंडदान कर दिया। उनका सिर मुंडा हुआ था देह पर अंबर नहीं था अर्थात् दिशाऐं ही उनका अंबर हो गईं। किसी के चेहरे पर खुशी थी तो कोई आंसू बहा रहा था। अंतिम बार उन्होंने अपने परिजन को याद किया और फिर सनातन धर्म की रक्षा का अक्षय संकल्प ले लिया।
जी हां, हम बात कर रहे हैं श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के अंतर्गत खूनी नागा साधु बनने वालों की। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने हजारों नागा सन्यासियों को खूनी नागा की उपाधि दी। इन्हें खूनी नागा बनाए जाने के लिए विधि - विधान संपन्न हुए। जिसके तहत अखाड़े के इन साधुओं का चल समारोह निकला।
चलसमारोह भूखी माता स्थित छावनी से प्रारंभ हुआ और रामघाट तक पहुंचा। दोपहर को 12 बजे हवन प्रक्रिया प्रारंभ हुई। दरअसल श्री पंचदशनाम जूनाअखाड़े के इन सन्यासियों को खूनी नागा बनाने का क्रम प्रातः 7 बजे से प्रारंभ हो गया। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े की छावनी पर 13, 14, 16 और 4 मढ़ी के 52 सदस्यों ने नए साधुओं के साथ ईष्ट देवता भगवान दत्तात्रेय और निशान भाला दत्त प्रकाश के पूजन और आह्वान का क्रम चलता रहा। इस दौरान हर हर महादेव की गूूंज हर ओर सुनाई दी।
देवताओं के भजन के बाद प्रातः 8.30 बजे साधुओं के उपनयन संस्कार का क्रम प्रारंभ हुआ। युवा साधुओं का मुंडन हुआ। अपराह्न 3 बजे दीक्षा का द्वितीय क्रम प्रारंभ हुआ। नागाओं की दसों विधियां संपन्न हुईं। यह क्रम रात्रि 12 बजे तक चला। हवन की पूर्णाहूति पर जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद महाराज पहुंचे। उन्होंने मंत्र के साथ नागा साधुओं को दीक्षा दी। जिसके बाद उन्हें खूनी नागा कहा गया।