देश के इस सरकारी हॉस्पिटल में रोबोट करते है ऑपरेशन

देश के इस सरकारी हॉस्पिटल में रोबोट करते है ऑपरेशन
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अहमदाबाद: आश्चर्यजनक किन्तु सत्य. रोबॉट की मदद से किडनी ट्रांसप्लांट करने वाला गुजरात के अहमदाबाद का इंस्टिट्यूट ऑफ किडनी डिसीजेज ऐंड रिसर्च सेंटर (आईकेडीआरसी) देश का एकमात्र ऐसा सरकारी या निजी संस्थान है और तो और इस तकनीक से यह अब तक दुनिया में सबसे ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट भी कर चुका है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. इस संस्थान के डॉक्टर वजाइना के जरिए किडनी ट्रांसप्लांट करने में भी माहिर हैं. यहां गरीबों से किडनी ट्रांसप्लांट के एवज में कोई पैसा नहीं लिया जाता है. महिलाओं के केस में किडनी को वजाइना के जरिए शरीर में प्रवेश कराया जाता है और पेट में बने होल्स से रोबॉट की मदद से ट्रांसप्लांट किया जाता है.

डॉ. प्रांजल के मुताबिक, वजाइना के करीब एक तिहाई हिस्से में ही सेंसेशन होता है. बाकी हिस्से में एक कट लगाकर किडनी को शरीर में प्रविष्ट करा दिया जाता है. इस प्रक्रिया में पेट पर लंबे कट लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और पेशंट को चार दिन में डिस्चार्ज कर दिया जाता है. आईकेडीआरसी की नींव पद्मश्री डॉ. एच. एल. त्रिवेदी ने 1981 में डाली थी. यहां 2013 से रोबॉट की मदद से किडनी ट्रांसप्लांट किया जा रहा है. यहां इस काम को डॉ. प्रांजल मोदी और उनकी टीम अंजाम दे रही है. डॉ. मोदी बताते हैं कि रोबॉट की मदद से किडनी ट्रांसप्लांट करने के लिए पेशंट के पेट में पांच छोटे-छोटे छेद किए जाते हैं. यहां से रोबॉट की उंगलिओं की मदद से खराब किडनी को बाहर निकाला जाता है और नई को ट्रांसप्लांट किया जाता है. 


आईकेडीआरसी की डायरेक्टर डॉ. वीणा साह बताती हैं कि यहां अब तक 5380 गुर्दा प्रत्यारोपण हो चुके हैं. इनमें ऐसे केसेज भी बड़ी संख्या में हैं, जिनमें डोनर और पेशंट का ब्लड ग्रुप एक नहीं होता है. उनके मुताबिक, संस्थान में रोबोट की मदद से अब तक 402 गुर्दा प्रत्यारोपण किए जा चुके हैं, जो कि विश्व में सर्वाधिक हैं.

प्रत्यारोपण की खासियतें:
-रोबोट की मदद से गुर्दा प्रत्यारोण करने के लिए रोगी के पेट में पांच छोटे-छोटे छेद किए जाते हैं.
-यहां से रोबोट की उंगलियों की मदद से खराब गुर्दे को बाहर निकाला जाता है.
-फिर नए गुर्दे को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.
-महिलाओं के केस में गुर्दे को वजाइना के जरिए शरीर में प्रवेश कराया जाता है.
-इस प्रक्रिया में पेट पर लंबे कट लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.
-रोगी को चार दिन में डिस्चार्ज हो जाता है.
-संक्रमण का खतरा भी कम। पेट पर घाव के निशान भी नहीं रहते.

 

 

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