देश में एक बार फिर अन्नदाता सड़कों पर उतरने को मजबूर है. हर भाषण में किसानों के हित की बात करने वाले सरकार के झूठे वादों की सच्चाई से वाकिफ हो चुके किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पर है . क्योकि वो दिन लद गए जब किसान आत्महत्या कर लेता था, आज भी कर रहा है, मगर अब उसने हक़ की लड़ाई का दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया है. जिसे किसान आंदोलन का नाम दिया जा रहा है. असल मायने में यह किसान जागरण है. दशकों से मिटटी से सोना पैदा करने वाला ये जादूगर आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहा है. दुनिया चाँद तक जा पहुंची और किसान सिर्फ खेत की मेड़ तक सीमित रहा, कभी शिकायत नहीं की हर जुल्म को तकदीर समझ सहता गया .अब उसकी हिम्मत गवाह दे गई है. अब उसे समझ भी आने लगा है और अपनी शक्ति को भी वो पहचान चूका है. नौबत यहाँ तक नहीं आती गर उसे समय रहते हक़ दे दिया जाता. मगर सरकार और उसके नेता तो किसान को नीरा मुर्ख समझ रहे है.
तभी तो हाल ही में कई नेता किसान के खिलाफ बेहद शर्मनाक बयानबाजी से भी बाज नहीं आये. वे भूल गए की सुबह शाम की भूख मिटाने वाला, अन्न किसी फ़ैक्ट्री या संसद के गलियारों में पैदा नहीं होता. उसे वही अपनी मेहनत से सींचता है जिसे अज्ञानतावश तुम कोस रहे हो. आगामी एक जून से 10 जून तक किसानों के आंदोलन और शहरों की दूध, सब्जियां आदि सप्लाई रोकने के देशव्यापी आह्वान का असर भिण्ड जिले सहित पूरे ग्वालियर चंबल संभाग पर भी रहेगा. कोई भी पशुपालक, गल्ला तथा सब्जी उत्पादक किसान अपने उत्पादों को बेचने के लिए शहर नहीं लाएगा, नेता अपनी सियासत में मशगूल है और किसान की अपनी मज़बूरी है.
मगर इन सब के बीच हमेशा की तरह पिसेगी आम जनता जिसे सुबह बच्चों के दूध से लेकर शाम तक पेट की आग को बुझाने के लिए गांव की ओर देखना पड़ता है. गांव से खाना, सब्जी, दूध, अनाज आएगा तो ही भूख मिटेगी वर्ना मोटे पैकेज की नौकरी कर लाखों कमाने के बाद भी नींद आना मुश्किल होगा. किसान और उसके महत्त्व को जानकर भी नहीं समझने के पीछे सरकार का अपना स्वार्थ है. वो सिर्फ वोट की गिनती की भाषा समझती है और विपक्ष इसे सिर्फ मुद्दा बनाना चाहता है. मगर ये मुद्दा नहीं देश की छाती पर दशकों से गड़ा वो खंजर है, जिसे किसान का लहू पिने की आदत हो गई है. पता नहीं सिलसिला कब थमेगा ........
किसान आंदोलन : एक से दस जून तक किसान सड़कों पर
दुनिया चाँद तक, किसान खेत की मेड़ तक, आखिर कब तक