ज्योतिष के मुताबिक, किसी भी जातक की कुंडली में शनि और चंद्र ग्रह की युति को शुभ नहीं माना जाता है। ज्योतिष में इसे विष योग कहा जाता है। कहते हैं कि जिस भी जातक की कुंडली में यह योग मौजूद होता है वह जिंदगीभर कई तरह के विष के समान मुश्किलों का सामना करता है। पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है। आइए जानते हैं कि यह युति क्या असर डालती है और क्या है इसके निदान के उपाय।
शनि-चंद्र युति का असर :
1.इससे जातक के मन में हमेशा असंतोष, दुख, विषाद, निराशा और जीवन में कुछ कमी रहने की टीस बनी रही है। कभी कभी ख़ुदकुशी करने जैसे विचार भी आते हैं। यानी हर समय मन मस्तिष्क में नकारात्मक सोच बनी रहती है।
2.यह युति जिस भी भाव में होती है, यह उस भाव के फल को भी बुरी तरह प्रभावित करती है। जैसे अगर यह युति पंचम भाव में है तो जातक के जीवन में कभी स्थायित्व नहीं पाता है। वह भटकता ही रहता है। अगर सप्तम भाव में चन्द्र व शनि की युति है तो जातक का जीवनसाथी प्रतिष्ठित परिवार से तो होता है, किन्तु दाम्पत्य सुख ख़राब हो जाता है।
3.जातक शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए काम करता है। इसका मतलब यह कि व्यक्ति के जीवन में उसके शत्रु ही महत्वपूर्ण होते हैं।
4.शनि-चन्द्र की युति वाला जातक कभी भी अपने मन मुताबिक काम नहीं कर पाता है उसे हमेशा दूसरो का ही सहारा लेना पडता है। ऐसे व्यक्ति के स्वभाव में अस्थिरता होती है। छोटी-छोटी नाकामियां भी उसे निराश कर देती हैं।
इस योग के निदान के 7 उपाय :
1.प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ें। सिर पर केसर का तिलक लगाएं।
2.प्रति शनिवार को तेल का छाया दान करते रहें।
3.कभी भी रात में दूध ना पीएं। शनि मंदिर में दूध अर्पित करें।
4.अपनी वाणी एवं क्रिया-कर्म को शुद्ध रखें।
5.मांस और मदिरा से दूर रहकर माता या माता समान महिला की सेवा करें।
6.आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य और पश्चिम मुखी मकान में ना रहें।
7. शनि मंदिर में दूध अर्पित करें।
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