जानिए गौरी पूजा का महत्त्व और कहानी
जानिए गौरी पूजा का महत्त्व और कहानी
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हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार गौरी पूजन हर गणेश चतुर्थी पर होती है. गौरी पूजा से सौभाग्यवती स्त्रियों को अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है. हिंदी पंचाग के अनुसार इस बार वर्ष का पहला गौरी पूजन बुधवार 30 अगस्त 2017 को मनाई जाएगी. महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए गौरी व्रत करती है. इस पूजा और व्रत के पीछे प्राचीन समय की कहानी है. प्राचीन समय में आनंद नगर में धर्मपाल नामक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन-यापन करता था. धर्मपाल के जीवन में धन, वैभव की किसी प्रकार की कमी नहीं थी. ये सब होने के बावजूद उन्हें एक दुःख सताता था कि उनकी कोई संतान नहीं थी.

सेठ धर्मपाल खूब पूजा-पाठ और दान-पुण्य किया करते थे. उसके पूजा-पाठ से प्रसन्न हो कर ईश्वर की कृपा से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ. पुत्र की आयु अधिक नहीं तह. सेठ धर्मपाल को ज्योतिषियों ने बताया कि उनके पुत्र की मृत्यु सोलहवे वर्ष में सांप डसने के कारण हो सकती है. कुछ समय पश्च्चात धर्मपाल ने अपने पुत्र का विवाह एक योग्य एवं संस्कारी कन्या से कर दिया. वह बचपन से माता गौरी का व्रत रखती थी, जिससे खुश हो कर माता गौरी ने कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने के आशीर्वाद दिया, इस कारण धर्मपाल के पुत्र को लंबी आयु प्राप्त हो गई. इस दिन स्नान-ध्यान से पवित्र हो कर मंगला गौरी की मूर्ति या चित्र को लाल रंग के कपड़े से लपेट कर पूजा की चौकी पर रखे. इसके बाद गेंहू के आटे से एक दिया बना कर भगवान गणेश की पूजा करे.

माता गौरी की पूजा के लिए जल, सिंदूर, सुपारी, लौंग, फल, फूल, इलायची, बेलपत्र, तथा मेवा जरूर रखे. माता गौरी को मेहँदी और चूड़ियाँ चढ़ावा मे रखे. गेंहू के बने दिए से माता गौरी की आरती उतारे, अंत में माता गौरी की व्रत की कथा सुनी जाती है. पूजा सम्पन्न होने के बाद माता गौरी से सौभाग्यवती, सुख, वैभव तथा मंगल शांति के लिए कामना करे. माता गौरी की लीला अपार है, वह सच्चे दिल से की गई भक्ति से खुश दीर्घायु होने का वरदान देती है.

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