रंगकर्म हो या बॉलीवुड हो, क्षेत्रीय मूवीज हो या लेखन हो, निर्देशन हो स्केचिंग हो, एक शख्स जो कला की हर विधा में कुछ ऐसा रम गया की उसी का हो गया. ऐसी ही शक्सियत का नाम गिरीश कर्नाड जिन्होंने अपनी कला के क्षेत्र में जो मुकाम पाया है जो शायद ही किसी ने पाया हो, अपने अभिनय से हर किसी के दिल में जगह बनाने वाले गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था.
बचपन से ही नाटकों और रंगमंच में रूचि रखने वाले गिरीश कर्नाड ने रंगमंच में कई नाटक लिखे जिसमें ऐतिहासिक नाटक 'तुगलक' भी शामिल है साथ ही 'ययाति','हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल' और 'अग्नि और बरखा' काफी पॉपुलर हुए जो अभी तक रंगमंच की दुनिया की शान बने हुए है.
नाटकों के साथ ही गिरीश कर्नाड ने कई फिल्मों के लेखन का काम किया साथ ही कई फिल्मों में अपने अभिनय की छाप भी छोड़ी जो बरसों याद रखी जाएगी. गिरीश कर्नाड ने लेखक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से की, उसके बाद ही उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय भी किया जिसमें निशांत, मंथन, पुकार,एक था टाइगर और टाइगर ज़िंदा है शामिल है. साथ ही गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी कई कार्यक्रम और 'सुराजनामा' जैसे सीरियल्स में काम किया है. करनाड संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. कई अवार्ड्स पा चुके गिरीश कर्नाड का भारतीय कला को दिया योगदान अमूल्य है जो कभी न भूला जाएगा.
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