हम रोज़ाना कई चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वे बनती केसी हैं यह नहीं जानते. ऐसी ही एक चीज़ है माचिस, जिसे हम अपने घरों में रोज़ इस्तेमाल होते देखते हैं. चलिए जानते हैं माचिस के बारे में कुछ और बातें-
माचीज़ का निर्माण इंग्लैंड के जॉन वॉकर ने 1827 में किया था. इसे लकड़ी के टुकड़े पर गोंद, स्टार्च, एंटीमनी सल्फाइड, पोटैशियम क्लोरेट लगाकर बनाया गया था, पर यह सेफ नहीं थी.
कैसे बनती है माचिस
पहले माचीज़ की तीलियों को हाथों से बनाना पड़ता था और हाथों से ही उसके सिरे पर मसाले लगाये जाते थे. माचिस के बॉक्स को भी लकड़ी के टुकड़ों के साथ ही बनाया जाता था. लेकिन बाद में इसे बनाने के लिए मशीनों का यूज़ होने लगा . अब लकड़ी की तीली, लकड़ी के बॉक्स, तीलियों पर मसाला लगाना और सुखाना, बॉक्स पर मसाला लगाना और लेबल चिपकाना, बॉक्स में तीलियाँ भरना आदि सारे काम मशीनों से होने लगे हैं.
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(1) भारत में माचीज़ का निर्माण सन 1895 से शुरू हुआ था. पहली फैक्ट्री अहमेदाबाद में और फिर कलकत्ता में खुली थी.
(2) स्वीडन की एक मैच मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने भारत में माचिस बनाने की कंपनी खोली थी. यह कंपनी 'वेस्टर्न इंडिया मैच कंपनी' के नाम से काम कर रही है.
(3) भारत में कुछ ही फ़ैक्टरीज़ ऐसी है जिनका सारा काम मशीनों से होता है, जबकि ज्यादातर फ़ैक्टरीज़ में हाथों से ही काम होता है.
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