महापर्व छठ के प्रति उत्तर भारत के लोगो में उत्साह और उमंग देखने को मिल रहा है. आज के दिन छठ माता की पूजा की जाती है और डूबता हुए सूरज को अर्ध्य दिया जाता है. कार्तिक मॉस में पड़ने वाली षष्टी के दिन माताए अपने बच्चो के लिए व्रत करती है और शाम के समय पहला अर्ध्य और अगले दिन सुबह के समय सूर्य भगवान् को अर्ध्य दिया जाता है. महापर्व के अगले दिन व्रत करने वाले दिन भर व्रत करके शाम के समय भोजन करते है जिसे खरना कहा जाता है. खरना का पसद बहुत महत्वपूर्ण होता है जिसे लेने के लिए आसपास के लोगो को भी बुलाया जाता है. प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बनी हुई खीर के साथ दोष चावल का पिट्ठा और इसके साथ घी से चुपड़ी हुई रोटी बनायीं जाती है, इसमें नमक या चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ का प्रसाद बनाया जाता है,जिसमे सबसे मुख्य ठेकुआ होता है,इसके अलावा चावल के लड्डू भी बनाये जाते है,सभी तैयारियां करने के बाद शाम के समय बांस की टोकरी में सभी चीजों को सजा कर सूर्य को अर्ध्य देने के लिए घाट पर जाते है. और पानी के अंदर तब तक खड़े रहते है जब तक सूर्य डूब ना जाये डूबते हुए सूरज को पानी और दूध से अर्ध्य दिया जाता है.और फिर अगली सुबह उगते हुए सूरज को जल और दूध से अर्द्य देकर छठ पूजा पूरी होती है.
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