स्वामी विवेकानंद यह नाम सुनते ही हर भारतीय का सर श्रद्धा से झुक जाता है, और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. हो भी क्यों न जैसा उनका नाम उसके अनुरूप उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी में काम भी वैसा ही किया. नयी सोच और काम के प्रति गजब का जज्बा रखने वाले विवेकानंद जी एक भूतपूर्व मानव थे. उन्होंने हर बार देश को गौरवान्वित किया. और आज न होने के बावजूद वे अपने गुणों से, अपने कार्यो से पूरे विश्व में अमर है.
स्वामी विवेकानंद ने पूरे जीवन चरित्र के निर्माण पर बल दिया. वे देश में इस प्रकार की शिक्षा चाहते थे. जिससे छात्र-छात्रों का सर्वांगीण विकास हो सके. बच्चो को अच्छी शिक्षा के साथ ही उनका उद्देश्य था उन्हें अपने पैरो पर खड़ा किया जाएं, न कि नौकरी तक सीमित रखा जाएं.
आइये एक नज़र डालते है स्वामी विवेकानंद के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धांत पर
-स्वामी जी का मत था कि बालक-बालिका दोनों को समान शिक्षा प्रदान की जाएं.
-छात्र अधिक नंबर प्राप्ति की चाह के बजाय अपने चरित्र निर्माण पर अधिक ध्यान दे.
-धर्म की शिक्षा, किताबो आदि से न देकर आचरण एवं संस्कारो द्वारा दी जाएं.
-पाठ्यपुस्तकों में लौकिक अवं अलौकिक दोनों विषयो का समावेश होना चाहिए.
-उन्होंने कहा था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बच्चो की शारीरिक, आत्मिक, एवं मानसिकता का विकास हो सके
-शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे छात्र आत्मनिर्भर बन सके. वे खुद के पैरो पर खड़े हो सके.
शिक्षा को बढ़ावा
-स्वामी जी का कथन था कि शिक्षा घर में और गुरु के द्वारा प्राप्त की जा सकती है.
-गुरु और शिष्य का सम्बन्ध घनिष्ठ होना चाहिए.
-मानवीय और राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू की जानी चाहिए.
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