सनातन धर्म में गुरु के महत्व का खास रूप से वर्णन किया गया है। पौराणिक काल से ही गुरु का स्थान देवताओं से ऊपर बताया गया है। प्रत्येक वर्ष गुरु के प्रति अपनी आस्था दिखाने के लिए आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा का त्योहार 03 जुलाई, सोमवार के दिन मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक, इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, आइये आपको बताते है गुरु पूर्णिमा की कथा...
गुरु पूर्णिमा की कथा:-
गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाने के पीछे मुख्य वजह है महर्षि वेदव्यास का जन्म। महर्षि वेदव्यास प्रभु श्री विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर एवं माता सत्यवती थी। उन्हें बाल्यकाल से ही अध्यात्म में बहुत रुचि थी। जिसको पूरा करने के लिए उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की तथा वन में जाकर तपस्या करनी आरम्भ कर दी। किन्तु उनकी माता ने इस इच्छा को मना कर दिया। महर्षि वेदव्यास (महर्षि वेदव्यास की रोचक कहानी) ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया तथा अपनी बात को स्वीकार करा लिया। किन्तु उन्होंने आज्ञा देते हुए कहा की जब घर का ध्यान आए तो वापस हमारे पास लौट आना।
फिर वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए तथा वहां जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य के तौर पर उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। तत्पश्चात, उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया महाभारत (महाभारत कथा), अठारह महापुराणों एवं ब्रह्मास्त्र की रचना की, उन्हें वरदान प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है कि, किसी न किसी रूप में हमारे बीच महर्षि वेदव्यास आज भी उपस्थित है। इसलिए हिंदू धर्म में वेदव्यास भगवान के तौर पर पूजे जाते हैं। आज भी वेदों का ज्ञान लेने से पहले महर्षि वेदव्यास का नाम सबसे पहले लिया जाता है। गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर आप भी महर्षि वेदव्यास की पूजा करें।
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