हमारे शास्त्रों में दान का विशेष महत्व बताया गया है। दान करने से पुण्य फल की तो प्राप्ति होती ही है वहीं यह भी माना जाता है कि जीवन को बचाने में ’दिया लिया ही आड़े आता है’ अर्थात दान करने से व्यक्ति को पुण्य फल तो मिलता ही है वहीं घटना दुर्घटना से बचाने में भी दान का पुण्य सामने आकर बचा ले जाता है। शास्त्रों में दान का ही महत्व सर्वाधिक बताया गया है तथा दान के प्रकारों का भी उल्लेख शास्त्रों में मिलता है।
ये होते है चार प्रकार के दान
नित्य दान, नैमित्तिक दान, काम्य दान और विमल दान। नित्यदान परोपकार की भावना और किसी फल की इच्छा न रखकर यह दान दिया जाता है। दूसरा नैमित्तिक दान जाने-अंजाने में किए पापों की शांति के लिए विद्वान ब्राह्मणों को दिया जाता है। तीसरा काम्यदान। संतान, जीत, सुख-समृद्धि और स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से यह दान दिया जाता है। चौथा दान है विमलदान। यह दान ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए दिया जाता है। ऐसा कहा गया है कि न्यायपूर्वक यानी ईमानदारी से अर्जित किए धन का दसवां भाग दान करना चाहिए। कहते हैं लगातार दान देने वाले से ईश्वर सदैव प्रसन्न रहते हैं।