जानिए क्या है लिट्टी चोखा की कहानी

जानिए क्या है लिट्टी चोखा की कहानी
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लिट्टी-चोखा केवल एक व्यंजन नहीं है, बल्कि बिहार की संस्कृति और पहचान का प्रतीक है। इसका स्वाद इतना खास होता है कि जो भी इसे एक बार खाता है, उसका दीवाना हो जाता है। समय के साथ लिट्टी-चोखा ने कई बदलाव देखे हैं, लेकिन इसका अनोखा स्वाद अब भी लोगों के दिलों पर राज करता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि लिट्टी-चोखा का इतिहास बिहार की धरती जितना ही पुराना है।

मगध साम्राज्य से जुड़ा इतिहास

लिट्टी-चोखा का इतिहास काफी पुराना है, और माना जाता है कि इसकी जड़ें प्राचीन मगध साम्राज्य से जुड़ी हैं। यह साम्राज्य बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों पर शासन करता था। माना जाता है कि उस समय के सैनिक इसे अपने साथ युद्ध के मैदान में ले जाते थे। लिट्टी को आग पर सेंककर आसानी से तैयार किया जा सकता था, और इसके साथ सादा चोखा खाने से उन्हें पौष्टिक भोजन मिल जाता था।

लिट्टी-चोखा: सैनिकों का आदर्श भोजन

लिट्टी-चोखा उस दौर में सैनिकों का प्रमुख भोजन था क्योंकि इसे बिना ज्यादा तैयारी के आसानी से पकाया जा सकता था। इसके लिए सिर्फ गेहूं के आटे और सत्तू की जरूरत होती थी। चोखा बनाने के लिए आलू, बैंगन और टमाटर जैसी सामान्य सब्जियों का उपयोग होता था, जो आग में भूनकर तैयार किया जाता था। यह भोजन न केवल पौष्टिक था, बल्कि इसे लंबे समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता था।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में लिट्टी की भूमिका

लिट्टी-चोखा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका निभाई। 1857 के दौरान तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य सेनानियों ने इसे अपना मुख्य भोजन बनाया था। जंगलों में छिपकर लड़ाई लड़ते समय, लिट्टी को आसानी से पकाया जा सकता था। इसे आग पर या गरम पत्थरों पर सेंककर तैयार किया जाता था, जिससे इसमें ज्यादा ईंधन की भी जरूरत नहीं होती थी। इसकी लंबी शेल्फ लाइफ ने इसे सेनानियों के लिए एक उपयोगी भोजन बना दिया था।

लिट्टी-चोखा का बदलता स्वरूप और बढ़ती लोकप्रियता

समय के साथ, लिट्टी-चोखा का स्वाद और तरीके बदलते रहे, लेकिन इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई। मुगल काल में इस व्यंजन को शाही रसोइयों ने और भी खास बना दिया। आज यह व्यंजन न केवल बिहार और झारखंड में, बल्कि पूरे भारत में लोकप्रिय है। रेस्तरां से लेकर स्ट्रीट फूड स्टॉल तक, लिट्टी-चोखा हर जगह आसानी से मिल जाता है। यह व्यंजन बिहार की पहचान और गौरव का प्रतीक बन चुका है।

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