सुप्रीम कोर्ट के जिस पूर्व जज से Pegasus की जाँच कराएंगी ममता, जानिए उनके NGO को कौन देता है फंड ?

सुप्रीम कोर्ट के जिस पूर्व जज से Pegasus की जाँच कराएंगी ममता, जानिए उनके NGO को कौन देता है फंड ?
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कोलकाता: Pegasus कांड में जाँच के लिए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने 2 सदस्यीय आयोग का गठन किया है। इस आयोग का नेतृत्व शीर्ष अदालत के पूर्व जस्टिस मदन लोकुर करेंगे। वहीं दूसरे सदस्य कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस हैं। बता दें कि सीएम ममता बनर्जी ने जिन पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर को आयोग की कमान सौंपी है, वह अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा वित्त पोषित एक गैर सरकारी संगठन (NGO) के वरिष्ठ सदस्य हैं। वह कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं।

इस संस्था को वर्ष 2021 में अमेरिकी विदेश विभाग, नई दिल्ली के ब्रिटिश उच्चायोग, कनाडा के उच्चायोग समेत अन्य से योगदान मिला है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका की तरफ से इस संस्था को किए गए योगदान का मकसद 'भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में बंदियों के लिए वकालत और आउटरीच कार्यक्रम' संचालित करना था। ब्रिटेन के लिए ये फंड 'भारत में न्याय की गति पर शोध और विदेशी राष्ट्रीय बंदियों और अपराध के शिकार लोगों पर उनका प्रभाव' जानने के लिए दिया गया था। वहीं कनाडा की तरफ से 'व्यय की प्रतिपूर्ति' के उद्देश्य से फंड दिया गया था। इनके अलावा, CHRI को केलिडोस्कोप डायवर्सिटी ट्रस्ट, फ्रेडरिक नौमैन स्टिफ्टंग-जर्मनी, द हैन्स सीडल फाउंडेशन और अन्य से भी फंड मिला है। उल्लेखनीय है कि पूर्व जस्टिस मदन लोकुर उन चार न्यायाधीशों में शामिल थे, जिन्होंने 2018 में तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ एक प्रेस वार्ता की थी। इसके साथ उन्होंने CHRI के सदस्य के रूप में, NRC की चालू प्रक्रिया के खिलाफ अन्य लोगों के साथ बयान जारी किया था।

बयान में पूर्व जस्टिस ने कहा था कि, 'संबंधित नागरिक होने के नाते, हम संवेदनशील मुद्दों पर अधिकारों के लिए भारत के संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों की पुष्टि करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ देखते हैं। इसलिए हम अवैध हिरासत और निर्वासन से जुड़े एक जटिल मामले पर भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) के हालिया बयानों से निराश हैं।' बयान में NRC की पूरी प्रक्रिया को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए मुख्य न्यायाधीश के एक स्टेटमेंट पर नाराजगी जताई गई थी। साथ ही मामले को ‘बंदियों’ के मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला बताया गया था और उनकी परिस्थितियों के लिए कोर्ट को जिम्मेदार ठहराया गया था।

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