जेंडर इक्वालिटी हमेशा से डिबेटेबल मुद्दा देखने के लिए मिला है। एजुकेशन का फील्ड भी इस बात से अछूता नहीं है। मर्दों और औरतों को क्या पढ़ाई करना जरुरी है, जिसका निर्णय भी सोसायटी द्वारा खींचे दायरे में रहकर ही लेना पड़ता है। मसलन यदि कोई लड़का गाइनोकॉलजिस्ट और लड़की सीविल इंजीनियर करना चाह रही है, तो उसकी चॉइस को जज किया जाने लगता है। कुछ ऐसी ही मुद्दों पर डॉक्टर जी की कहानी का ताना-बाना बुना गया है।
कहानी: भोपाल के उदित गुप्ता (आयुष्मान खुराना) मेडिकल स्टूडेंट हैं और लंबे वक़्त से ऑर्थोपिडिशियन बनने का सपना देख रहे हैं। रैंक कम होने की वजह से उनके नसीब में आ जाती है गाइनोकॉलजिस्ट की सीट। उदित इससे खुश नहीं हैं क्योंकि उदित मानते हैं कि ये डिपार्टमेंट महिलाओं का होता है। हालांकि दूसरा ऑप्शन नहीं मिलने के कारण से मन मारकर उदित दाखिला लेते हैं। अब यहां से शुरू होती है उदित की अग्नि-परीक्षा। डिपार्टमेंट में एकमात्र मेल स्टूडेंट उदित की जर्नी कई रोलर-कोस्टर राइड लेते हुए आगे बढ़ने लग जाती है। जहां उसकी मुलाकात सीनियर फातिमा (रकुलप्रीत) से होती है। क्या उनकी दोस्ती प्यार में तब्दील हो पाती है? और क्या उदित गाइनोकॉलजिस्ट बनना स्वीकार भी करते है? यह सब जानने के लिए आपको थिएटर की ओर रुख करना पड़ेगा।
क्यों देखें: बता दें कि एक लाइट हार्टेड कॉमिडी संग सोशल मैसेज देती फिल्म को एक अवसर दिया जा सकता है। यदि आप फुल टू एंटरटेन होने के मकसद से थिएटर जा रहे हैं, तो शायद आप निराश होकर निकलें।
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