जन्माष्टमी : जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि

जन्माष्टमी : जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि
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हिंदू धर्म में श्री कृष्णजन्माष्टमी का विशेष महत्व है. इस त्यौहार को पूरी भारतीय संस्कृति बड़े ही धूमधाम के साथ मनाती है. हिंदू धर्म में श्री कृष्ण प्रमुख देवताओं में से एक है. श्री कृष्ण जब तक इस धरती पर रहे वे अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ते रहे. श्री कृष्ण ने कई असुरों का इस दौरान नाश किया. जिनमें उनके मामा कंस का नाम प्रमुख रूप से शामिल है. श्री कृष्णजन्माष्टमी के दिन भक्त व्रत भी रखते हैं और किशन-कन्हैया का विधिवत पूजन करते हैं. तो आइए जानते हैं इस व्रत और पूजा विधि के बारे में.

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि 

हमारे शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जन्माष्टमी का व्रत कामना पूर्ण करने वाला व्रत होता है. जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व एक समय ही भोजन करना चाहिए. अगले दिन सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद पूजा के लिए गंगा जल से पूरे कृष्ण परिवार को स्नान कराना चाहिए और सोने, चांदी, पीतल, मिट्टी श्री कृष्ण की जो भी मूर्ति आपके पास हो उसे पलने में स्थान देना चाहिए. श्री कृष्ण को इस दौरान सुंदर वस्त्रों से सजाना चाहिए. अब 16 उपचारों से भगवान का पूजन करें. श्री कृष्ण के पूजन के दौरान बीच-बीच में देवकी, वासुदेव,नंद, यशोदा और बलदेव आदि का नाम भी लेते रहे. साथ ही कृष्ण जी को झूला भी अवश्य झूलाए. व्रत रखने वाले भक्त मध्यरात्रि में अपना व्रत खोलें. 

कब मनाते हैं जन्माष्टमी ?

प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. ऐसा कहां जाता है कि द्वापरयुग में श्री कृष्ण ने अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में माता देवकी और पिता वसुदेव के यहां जन्म लिया था. 

 

कब मनाई जाती है जन्माष्टमी ?

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