'दुनिया के सबसे बड़े डिप्लोमेट थे कृष्ण-हनुमान', विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आखिर क्यों बोला ऐसा?

'दुनिया के सबसे बड़े डिप्लोमेट थे कृष्ण-हनुमान', विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आखिर क्यों बोला ऐसा?
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नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी बुक ‘द इंडिया वे’ के मराठी अनुवाद ‘भारत मार्ग’ के विमोचन के अवसर पर कहा कि विश्व के सबसे बड़े डिप्लोमेट एक तो श्री कृष्ण थे एवं दूसरे हनुमान जी थे। उन्होंने कहा, 'बहुत सीरियस जवाब दे रहा हूं मैं आपको कि यदि आप उनको कूटनीति की परिप्रेक्ष्य से देखें तो पाएंगे कि वो किस स्थिति में थे तथा उन्हें कौन सा मिशन दिया गया था, किस तरीके से उन्होंने हैंडल किया था। हनुमान जी अपने इंटेलिजेंस के साथ मिशन के आगे भी बढ़ गए थे। सीता से भी मिले थे, पूरी लंका की खबर ली तथा फिर लंका को जला भी दिया। आप देखेंगे कि वो कैसे डिप्लोमेटिक थे। वो मल्टीपर्पज डिप्लोमेट थे।'

उन्होंने महाभारत के किस्सों को भी संदर्भों के रूप में उपयोग किया तथा कहा, 'यदि आज मैं आपको बताउं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में दुनिया के 10 सबसे बेहतर स्ट्रेटेजिक कॉन्सेप्ट कौन से हैं। उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि आज वैश्विक दुनिया है, सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। उस वक़्त भी ऐसा ही था। अर्जुन को इस बात की परेशानी थी कि वो अपनों से ही कैसे युद्ध करें। कई बार हम ये बोलते हैं कि पाकिस्तान ने ये किया वो किया... चलो हम स्ट्रेटेजिक पेशेंस दिखाते हैं। महाभारत में जिस प्रकार से कृष्ण ने शिशुपाल को हैंडल किया, वो स्ट्रेटेजिक पेशेंस का सबसे अच्छा उदाहरण है। 100 बार उन्होंने माफ किया तथा उसके बाद उन्होंने क्या किया ये सबको पता है।'

एस। जयशंकर ने कहा, 'आजकल देशों के बीच मर्यादा की बात होती है। महाभारत की कहानी क्या है, उसमें जो नियमों का उल्लंघन करते हैं उन्हें अंतिम वक़्त में स्वयं नियम याद आ जाते हैं, फिर चाहे वो कर्ण हों या फिर दूर्योधन। पूरी जिंदगी नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले बोलते लगते हैं कि ये नहीं करो ये नियमों के अनुसार नहीं है।' उन्होंने कहा, 'कहा जाता है कि हमसे बड़े देश हैं, मगर ये याद रखने योग्य बात है कि पांडव 5 थे और कौरव 100। पांडवों की सेना भी छोटी थी मगर सोच बड़ी थी। अनुशासन अधिक था, क्रिएटिविटी ज्यादा थी तथा श्री कृष्ण उनके साथ थे। कभी कभी हम प्रतिष्ठा मूल्यों (रेपोटेशन कॉस्ट) की बात करते हैं, तो पांडवों की रेपोटेशन कौरवों के मुकाबले बहुत अधिक थे। इसलिए रेपोटेशन का बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। कभी-कभी बड़े फायदे के लिए टैक्टिकल एडजस्टमेंट करने पड़ते हैं। इसके भी कई उदाहरण हैं, जैसे युधिष्ठिर ने अश्वतथामा के बारे में बोला, टेक्निकली आप कहेंगे कि ये गलत है मगर उन्होंने एक वजह के लिए ये किया।'

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