कुर्सी कुमार और पलटूराम ! नीतीश कुमार को उनके विरोधियों ने क्यों दिए ये नाम ?

कुर्सी कुमार और पलटूराम ! नीतीश कुमार को उनके विरोधियों ने क्यों दिए ये नाम ?
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पटना: मौका भांपना और परिस्थितियों को देखकर चतुराई से कारगर दांव लगाना, सिविल इंजीनियरिंग के छात्र से राजनीति में कदम रखने वाले नीतीश कुमार का चार दशक लंबा राजनीतिक कॅरियर इस तरह के उदाहरणों से भरा पड़ा है। बार-बार पाला बदलने के चलते विरोधियों ने उन्हें कुर्सी कुमार और पलटू राम का नाम दिया। क्योंकि वो अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए कभी लालू यादव, तो कभी भाजपा के पाले में जा बैठे। आज उन्ही नीतीश कुमार का जन्मदिन है, आइए एक नजर डालते हैं, उनके पाला बदलने की घटनाओं पर।

– 1985 में नीतीश कुमार नालंदा की हरनौत सीट से विधायक चुने गए और 1989 में पहली बार बाढ़ लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बने। इस समय तक नीतीश खुद को लालू का छोटा भाई बताते थे। यहां उन्होंने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी का गठन किया।

– 1998 में नीतीश कुमार ने लालू के धुर विरोधी भाजपा से हाथ मिला लिया और वाजपेयी सरकार में मंत्री बन गए। साल 2000 में कुछ दिनों के लिए नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद फिर केंद्र में रेल मंत्री बने। यहां नीतीश कुमार ने अपनी समता पार्टी का जदयू में विलय किया।

– 2005 में नीतीश फिर भाजपा के समर्थन से बिहार के सीएम बने और 2013 तक सब सही चला, लेकिन नीतीश कुमार को फिर लालू यादव की याद आ गई और उन्होंने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रचार समिति अध्यक्ष बनाने के विरोध में 2013 में NDA से नाता तोड़ लिया।

– भाजपा से नाता टूटा और 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली, तो नीतीश कुमार ने 2015 में अपने धुर विरोधी राजद से हाथ मिलाया और गठबंधन ने जीत हासिल की। फिर बिहार के सीएम बने। हालांकि, इस चुनाव में जेडीयू की सीटें राजद से कम थीं, लेकिन यहां भी कुर्सी नीतीश को ही मिली।

–लेकिन लालू–नीतीश का साथ लम्बा न चला और वे राजद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर 2017 में NDA में आ गए और एक बार फिर भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बने।

– 2022 में नीतीश कुमार को फिर से NDA की नाव डगमगाती दिखी, तो वे फौरन उतर गए और एक बार फिर से लालू यादव से हाथ मिला कर अपने कॅरिअर का छठा सियासी दांव लगाया। इसके चलते नीतीश कुमार, राजद, कांग्रेस और वाम दलों के समर्थन से फिर मुख्यमंत्री बने।

बिना बहुमत के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड: ये भी गौर करने लायक है कि, जीतनराम मांझी के 9 महीने के कार्यकाल (2014-2015) को हटा दें, तो नीतीश कुमार अपनी पाला बदलने की राजनीति के कारण 2005 से अब तक लगातार राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। मजे की बात तो यह है कि, इस दौरान हुए 4 विधानसभा चुनावों में जदयू एक बार भी खुद के दम पर बहुमत नहीं ला सकी। साल 2015 में जब नीतीश कुमार ने राजद, कांग्रेस के साथ सरकार बनाई थी तब राजद के 80 सीटों के मुकाबले जदयू के पास 71 सीटें थी। 2020 के चुनाव में भी जदयू को भाजपा के मुकाबले करीब आधी सीटें ही मिली थीं, लेकिन कुर्सी एक बार फिर नीतीश कुमार को मिली। अब जब नीतीश कुमार ने 2022 में फिर राजद से हाथ मिलाया है, तो लालू खेमा तेजस्वी को सीएम बनाने की मांग कर रहा है, नीतीश कुमार भी इससे कुछ सहमत दिख रहे हैं, आखिर राजनीतिक करियर का आखिरी पड़ाव जो है। लेकिन, नीतीश बाबू के दिमाग पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वे कब मौके को देखकर कौनसा दांव चल दें, कोई नहीं जानता।

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