आज यानी गुरुवार को भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि है और इसे कुशग्रहणी और पिठौरी अमावस्या कहते हैं. ऐसे में इस तिथि पर वर्षभर में किए जाने वाले धर्म-कर्म के लिए कुश यानि एक प्रकार की घास का संग्रह करते हैं और ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक़ पितरों का तर्पण करने के लिए ये दिन खास होता है. आपको बता दें कि इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद पितरों का तर्पण व दान करना लाभदायक माना जाता है लेकिन बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती हैं कि अमावस्या पर पितर पूजन करने से लाभ व पितरों का आशीर्वाद मिलता है. इस कारण से आज हम आपको इसके खास महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं, आइए जानते हैं.
कहते हैं आज कुश यानि घास का संचय करना चाहिए और जो भी कुश इस तिथि को मिल जाए, वही ले लेना चाहिए. कहते हैं वैसे तो जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, वह देवताओं और पितर देवों के पूजन कर्म के लिए उपयुक्त होती है और इसे निकालने के लिए सूर्योदय का समय श्रेष्ठ माना जाता है. तो अब आइए जानते हैं इसका धार्मिक महत्व.
धार्मिक महत्व - कहते हैं इस दिन कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को आध्यामिक ऊर्जा ज्ञान की प्राप्ति होती है. इसी के साथ शास्त्रों के अनुसार कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाते हैं. कहते हैं इस दिन कुश की अंगुठी बनाकर अनामिका उंगली मे पहनकर पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है. इसी के साथ इस संबंध में मान्यता है कि हाथ में एकत्रित आध्यात्मिक ऊर्जा उंगलियों में न जाए और इस उंगली के नीचे सूर्य पर्वत रहता है। कहा जाता है सूर्य से हमें ऊर्जा, मान-सम्मान मिलता है और इस तिथि पर सुबह नदी किनारे जाकर पितरों का तर्पण करते हैं. कहते हैं आज के दिन हनुमान मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए.
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