हिंदू धर्म में हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हरछठ का त्योहार मनाया जाता है। जी हाँ और इसे हलषष्ठी, ललई छठ या ललही छठ भी कहते हैं। जी दरअसल धार्मिक मान्यता है कि, इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इसी के साथ धार्मिक मान्यता के अनुसार, द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के अवतार में जन्म लिया था। आप सभी को बता दें कि हरछठ का व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। जी हाँ और ऐसे में ये पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। इसी के साथ इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिट्टी के बर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरती हैं और विधि-विधान से पूजा करती हैं। आइए बताते हैं इस साल यह पर्व कब है और पूजा कैसे करनी है?
ललही छठ कब है- ललही छठ या हरछठ का त्योहार भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। जी हाँ और षष्ठी तिथि 17 अगस्त दिन बुधवार को शाम 6 बजकर 50 मिनट से प्रारंभ होगी। इसी के साथ षष्ठी तिथि का समापन 18 अगस्त को रात्रि 8 बजकर 55 मिनट पर होगा। वहीं उदया तिथि के अनुसार 18 अगस्त को हरछठ का व्रत रखा जाएगा।
ललही छठ की पूजा विधि- हलषष्ठी वाले दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आएं। उसके बाद साफ जगह पर गोबर से पुताई कर तालाब बनाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। अंत में विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। इसके बाद पूजा के लिए सात तरह के अनाज जैसे गेहूं, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान चढ़ाएं इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने चढ़ाएं। आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा भी चढ़ाएं। फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। अंत में हरछठ की कथा सुनें। इसके बाद महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुआ को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करती हैं। कहा जाता है इस व्रत को करने से व्रती को धन, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति भी होती है।
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