लालू यादव: चपरासी क्वार्टर से मुख्यमंत्री और चारा घोटाले से लेकर लैंड फॉर जॉब केस तक, दिलचस्प रहा है सफर

लालू यादव: चपरासी क्वार्टर से मुख्यमंत्री और चारा घोटाले से लेकर लैंड फॉर जॉब केस तक, दिलचस्प रहा है सफर
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पटना: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं। गोपालगंज के फुलवारिया में लालू का जन्म 11 जून 1948 को हुआ था। उनके पिता कुंदन राय दूध बेचने का काम करते थे और लालू भी बचपन में मां मरिछिया देवी के साथ घर-घर जाकर दूध बांटा करते थे। गांव में अधिक कुछ था नहीं, तो लालू 1966 में शहर में बड़े भैया के पास पढ़ने चले गए, जो पटना के बिहार वेटरनरी कॉलेज में चपरासी थे। लालू उसी कॉलेज के सर्वेंट क्वॉर्टर में रहते थे। यहीं से लालू बस से बीए की पढ़ाई करने बिहार नेशनल कॉलेज (BN College) जाय करते थे। जहां पर उनका सियासी करियर शुरु हुआ।

यहाँ लालू अक्सर मंच पर चढ़कर भाषण देते, ये कला उन्होंने बचपन में ही सीख ली थी। दरअसल, बचपन में लालू ‘नटुआ’ बनकर मंच पर जमकर धमाल मचाते थे। नटुआ यानी, वो लड़का जो लड़की के वेश में नाचता-गाता हो। इसलिए मंच लालू के लिए नया नहीं था। कॉलेज में छात्र लालू को सुनना पसंद करते थे। इसी के चलते अगले साल ही लालू पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी बन गए। 1970 में उनका ग्रेजुएशन पूरा हुआ। मगर, इस दौरान लालू स्टुडेंट यूनियन के अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए। इसके बाद लालू ने बड़े भैया के दफ्तर में ही (बिहार वेटरनरी कॉलेज) में डेली वेज बेसिस पर चपरासी की नौकरी कर ली। लेकिन, वे इस दौरान भी 3 वर्षों तक छात्र राजनीति में सक्रीय रहे और फिर कानून की पढ़ाई के लिए पटना यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया। 1973 में लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बन गए। यह वो समय था, जब 1974 में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन का ऐलान कर दिया था। लालू के लिए यह समय उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और लालू आंदोलन में शामिल हो गए। छात्र राजनीति में पकड़ रखने वाले लालू जल्द ही जेपी के चहेते बन गए।  

जेपी के करीबी होने के कारण आपातकाल (इंदिरा गांधी) की घोषणा के बाद लालू पुलिस के निशाने पर भी आ गए। पुलिस उन्हें तलाशते हुए उनकी ससुराल तक पहुंचने लगी। एक बार जब पुलिस लालू को पकड़ने के लिए पहुंची तो लालू पुलिस जीप पर चढ़ गए और कुर्ता फाड़ कर जोर-जोर से चीखने लगे। उनके बदन पर पुलिस के डंडों के निशान बने थे। पुराने लोग कहते हैं कि देखने वालों के दिमाग में ये दृश्य हमेशा के लिए छप गया। आपातकाल के बाद 1977 में लोकसभा चुनाव हुए और लालू जनता पार्टी के टिकट पर छपरा से मैदान में उतरे और जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया।

महज 29 वर्ष की आयु में संसद पहुंचने वाले लालू उस समय तक भारत के सबसे युवा सांसद थे। उधर जनता पार्टी में भी उनका कद बढ़ता रहा। जेपी ने लालू को स्टूडेंट्स एक्शन कमेटी का सदस्य बनाया। इसी कमेटी को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए टिकट निर्धारित करने थे। बताया जाता है कि, इसके बाद बड़े-बड़े नेता टिकट के लिए पटना वेटरनरी कॉलेज के सर्वेंट क्वॉर्टर के बाहर खड़े रहते थे। हालाँकि, उस समय जनता पार्टी की आंतिरक मतभेद के चलते सरकार गिर गई और 1980 में फिर चुनाव हुए। मगर, इस बार लालू हार गए। लेकिन, लालू हार नहीं माने और उन्होंने उसी साल विधानसभा चुनाव में सोनपुर से लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। 1985 में लालू ने एक बार फिर विधानसभा का चुनाव जीता। 

इसके बाद फ़रवरी 1988 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया। तब काफी जद्दोजहद के बाद लालू प्रसाद को विपक्ष का नेता बना दिया गया। 1990 के चुनाव में जनता दल ने सत्ता में वापसी कर ली और CPI के साथ सरकार के गठन करने योग्य सीटें भी जुटा लीं। तब तक, CM किसे बनाया जाए ये सवाल खड़ा हो गया। केंद्र में जनता दल के प्रधानमंत्री वीपी सिंह, राम सुंदर दास को सीएम बनाना चाहते थे। उस समय, वीपी की सरकार में उपप्रधानमंत्री थे ताऊ देवी लाल और उनका कहना था कि लालू को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया जाए। 

लेकिन, लालू 4 माह पहले लोकसभा चुनाव लड़कर दिल्ली संसद भवन पहुंचे थे और इसी समय उन्होंने अपनी वाक्पटुता से देवी लाल से घनिष्ठता बढ़ा ली थी। अब समस्या यही थी कि लालू ने 1990 विधानसभा चुनाव लड़ा भी नहीं था। विधायक दल की बैठक के पहले लालू, चंद्रशेखर और रघुनाथ झा ने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंकवा दिया। विधायकों में मतदान हुआ, तो सवर्णों के वोट रघुनाथ झा को मिले, रामसुंदर को हरिजनों के वोट मिले और पिछड़ी जाति के विधायक लालू के साथ चले गए। वोटों के इस विभाजन के बावजूद लालू विधायक दल के नेता बन गए। वहीं, चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के कहने पर गवर्नर युनूस सलीम को लालू को शपथ दिलाने से बचने के लिए दिल्ली बुला लिया। लालू को जब यह मालूम हुआ तो वह सीधा गवर्नर के घर पहुंचे, पर वह निकल चुके थे। लालू ने फिर ताऊ देवी लाल को फोन किया और समीकरण बिठाए, इसके बाद पहली बार लालू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 4 माह बाद लालू CM हाउस में शिफ्ट हो गए। इसके बाद लालू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 1990 के बाद 1995 में फिर सीएम बने। लेकिन 1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण लालू को कुर्सी छोड़नी पड़ी। इस दौरान लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष का पद संभाल लिया और अपरोक्ष रूप से सत्ता की बागडौर अपने ही हाथ में रखी। चारा घोटाला मामले में लालू यादव को कई महीने तक जेल भी जाना पड़ा। 

CBI के सह निदेशक यू एन विश्वास उस समय लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले की जांच कर रहे थे. विश्वास ने लालू की गिरफ्तारी के लिए बिहार के मुख्य सचिव से संपर्क भी किया था, मगर वे उपलब्ध नहीं हुए. फिर बिहार DGP से बातचीत की गई, तो उन्होंने एक तरह से पूरे मामले को ही टाल दिया था. वहीं, लालू यादव के CM हाउस के अंदर और बाहर हज़ारों की तादाद में उनके समर्थक इकठ्ठा हो गए.  ऐसे में CBI के चंद ऑफिसर के दम पर लालू को अरेस्ट करना आसान नहीं था और फिर CBI ने सेना की मदद मांगी. लेकिन, सेना पुलिस के काम में दखल नहीं दे सकती थी। आखिरकार, लालू को कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा। लगभग सत्रह साल तक चले इस ऐतिहासिक केस में CBI की स्पेशल कोर्ट के जज प्रवास कुमार सिंह ने लालू को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से 3 अक्टूबर 2013 को पाँच साल की कैद व पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। 

लालू यादव और जदयू नेता जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद उन्हें लोक सभा में अयोग्य घोषित कर दिया गया। भारतीय निर्वाचन आयोग के नये नियमों के मुताबिक, लालू प्रसाद अब 11 साल (5 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) तक लोक सभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। हालाँकि, अपने 5 साल की सजा में लालू बहुत कम दिन ही जेल में रहे, अधिकतर समय वो अस्पताल के नाम पर एक अलग भवन में रहते थे, जहाँ अक्सर लोग उनसे मिलने आया करते थे। अब भी लालू नौकरी के बदले जमीन मामले में फंसे हुए हैं, जो उनके केंद्र की मनमोहन सरकार में रेल मंत्री रहने के दौरान का है। आरोप है कि, लालू यादव ने लोगों को अवैध रूप से रेलवे में नौकरियां दी और बदले में उनसे अपने परिवार के नाम पर करोड़ों की जमीनें लिखवा ली। यानी, चपरासी की नौकरी से शुरू हुआ लालू का सफर शोहरत की बुलंदियों को छूते हुए भ्रष्टाचार के दलदल तक आ पहुंचा है, अब आगे क्या होना है, ये देखने लायक होगा।   

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