नई दिल्ली: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में अब तेजस्वी यादव का दौर शुरू हो गया है। शनिवार को पटना में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तेजस्वी यादव को पार्टी का सर्वोच्च नेता बनाने का फैसला लिया गया। बैठक में आरजेडी के संविधान में संशोधन कर लालू प्रसाद यादव के सभी अधिकार तेजस्वी यादव को सौंप दिए गए। अब तेजस्वी यादव को पार्टी सिंबल देने, उम्मीदवार तय करने और अहम फैसले लेने का पूरा अधिकार मिल गया है।
आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव आलोक मेहता ने बैठक में पार्टी संविधान संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। इस ऐतिहासिक बैठक में प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और उनके बेटे सुधाकर सिंह की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बनी रही। दोनों नेताओं ने अपनी अनुपस्थिति पर कोई बयान नहीं दिया, जिससे पार्टी के भीतर नए विवादों की अटकलें तेज हो गई हैं। लालू यादव का यह कदम एक बार फिर यह साबित करता है कि भारतीय राजनीति में लोकतंत्र और संविधान की चाहे कितनी भी बातें की जाएं, लेकिन असर अब भी राजतंत्र का ही है। मुलायम सिंह यादव, करूणानिधि, बीजू पटनायक, बालासाहेब ठाकरे, फारूक अब्दुल्ला और गांधी परिवार की तरह लालू यादव ने भी पार्टी की कमान एक योग्य कार्यकर्ता को सौंपने के बजाय अपने बेटे को दी है। वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं के संघर्ष को दरकिनार करते हुए लालू ने यह सुनिश्चित किया कि राजा का बेटा ही अगला राजा बने।
अब आरजेडी पूरी तरह से तेजस्वी यादव के इशारों पर चलेगी। राजनीतिक पंडित इसे एक बड़ा दांव मान रहे हैं, खासकर इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस बदलाव को बड़ा इशारा समझा जा रहा है। तेजस्वी को पार्टी का चेहरा बनाकर आरजेडी ने यह संकेत दे दिया है कि लालू के बाद पार्टी की विरासत तेजस्वी संभालेंगे और आगामी चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री के दावेदार भी वही होंगे। तेजस्वी यादव 9वीं कक्षा तक पढ़े-लिखे हैं और उन्हें पहले डिप्टी-सीएम पद संभालने का अनुभव भी है, वे लालू यादव के सुपुत्र भी हैं और इसलिए पूरे बिहार को सभालने में सक्षम भी हैं।
बैठक के बाद तेजस्वी यादव ने अपने विजन को लेकर बड़े दावे किए। उन्होंने कहा, "बिहार को अव्वल राज्यों की कतार में लाना हमारी प्राथमिकता है। हमने जो काम 17 महीनों में किया, वह पिछले 18 सालों में नहीं हुआ। सभी वर्गों का ध्यान रखते हुए हमने विकास का खाका तैयार किया है।" इस दौरान आरजेडी सांसद और तेजस्वी की बहन मीसा भारती ने भी तेजस्वी की नई भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय कार्यकारिणी के फैसले बेहद महत्वपूर्ण हैं। तेजस्वी यादव को पार्टी की जिम्मेदारी देकर सही फैसला लिया गया है।" वैसे मजे की बात ये है कि, मीसा भारती का नाम लालू यादव ने तब रखा था, जब इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी के दौरान लालू को मीसा कानून के तहत कैद किया गया था, उस गुस्से में लालू ने अपनी बेटी का नाम रखा था, ताकि उन्हें कांग्रेस सरकार के जुल्म हमेशा याद रहें। मगर, आज लालू उसी कांग्रेस के साथ INDIA गठबंधन में हैं और मीसा भारती कांग्रेस इ प्रधानमंत्री उम्मीदवार राहुल गांधी के साथ मटन बनाती नज़र आती हैं। सत्य है, राजनीति में कुछ भी संभव है।
जैसे लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव। तेज प्रताप ने भी बिहार सरकार में मंत्री पद संभाला है, वे तेजस्वी से बड़े भी हैं, लेकिन लालू ने उनकी जगह तेजस्वी को तरजीह दी। इसका कारण शायद लालू यादव ही अच्छी तरह जानते होंगे, क्योंकि राजद बनाने वाले वही हैं, तो उसकी कमान किसे सौंपना है, ये उनका अपना विचार है। हालाँकि, तेजप्रताप की इस पर कुछ ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आई, तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, "नेतृत्व कोई पद नहीं है, यह प्रयास और उदाहरण के बारे में है। परिवर्तन लाने के लिए अधिक सपने देखना, सीखना और मेहनत करना जरूरी है।"
तेजस्वी यादव के हाथों में पार्टी की कमान आने से बिहार की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। आरजेडी ने उन्हें चेहरा बनाकर युवाओं को जोड़ने और जातिगत समीकरणों को साधने का इरादा जताया है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी के भीतर और बाहर इस फैसले पर क्या असर पड़ता है। यह घटना भारतीय राजनीति के उस पहलू को फिर से उजागर करती है, जहां योग्य उम्मीदवारों की बजाय परिवारवाद और वंशवाद का दबदबा कायम है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी कितना आगे बढ़ेगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल लालू यादव का यह फैसला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।