हर व्रत कथा के अंत में सुनी जाती है लपसी तपसी की कहानी

हर व्रत कथा के अंत में सुनी जाती है लपसी तपसी की कहानी
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ज्योतिष शास्त्र में कई ऐसी बातें हैं जिन्हे जान लेना लाभदायक है. ठीक वैसे ही कई ऐसी कथाए भी है जिन्हे जानना और पढ़ना लाभदायक माना जाता है. ऐसे में आज हम आपको एक कथा सुनाने जा रहे हैं जो लपसी और तपसी की है और इसे सुनकर आप सभी को हैरानी होगी. कहा जाता है सभी व्रत और त्योहारों में यह कथा जरूर सुनी जाती है और अगर नहीं सुनी जाए तो सभी काम बिगड़ जाते हैं. आइए जानते हैं यह कहानी-कथा.

कथा - एक लपसी था , एक तपसी था. तपसी तो भगवान की तपस्या करता था और लपसी सवा सेर की लपसी बना कर उसका भोग लगाकर जीम लेता. एक दिन दोनों लड़ने लगे. लपसी बोला में बड़ा , तपसी बोला में बड़ा. इतने में नारदमुनि आये और बोले तुम क्यों लड़ रहे हो ? तो लपसी ने कहा मैं बड़ा हूं और तपसी ने कहा मैं बड़ा हूँ. तपसी बोला मैं सारे दिन भगवान की पुजा करता हूँ. यह सुन नारद जी ने कहा मैं तुम्हारा फैसला कल कर दूंगा. दुसरे दिन लपसी , तपसी नहाकर आये तो नारद जी ने सवा करोड़ की अंगूठी उनके आगे फेक दी. लपसी का ध्यान उस अंगूठी पर नहीं गया.

तपसी तपस्या करने बैठा तो उसे अंगूठी दिखी और उसने अपने घुटने के नीचे दबा ली और तपस्या करने लगा. लपसी लापसी बनाकर उसका भगवान के भोग लगाकर जीमने बैठ गया.इतने में नारद जी आये तब दोनों से पूछा कि कौन बड़ा हैं. फिर तपसी ने कहा मैं बड़ा हूँ. नारदजी बोले तेरा घुटना उठा तो उसके नीचे सवा करौड की अंगूठी निकली. तब नारद जी बोले कि ये अंगूठी तूने चुराई हैं तुझे तेरी तपस्या का फल नही मिलेगा. तब तपसी बोला हे ! नारद मुनि मेरी तपस्या का दोष कैसे दुर होगा. नारद जी ने कहा “ रोटी बना कर बाटया नहीं बनाया तो फल तुझे होगा. ब्राह्मण जीमा कर दक्षिणा नही दे तो फल तुझे होगा. साड़ी देके ब्लाउज नहीं दिया तो फल तुझे होगा. दिया से दिया जलावे तो फल तुझे मिलेगा.

सब व्रत त्यौहार की कहानी सुनने के बाद तेरी कहानी नही सुने तो फल तुझे होगा. तब से लपसी तपसी की कहानी सुनी जाती हैं. कहानी सुनने के बाद ऐसे कहे “ लपसी को फल लपसी न होज्यो , तपसी को फल तपसी न होज्यो , म्हाकी कहानी कथा को फल म्हाने होज्यो.. जय विष्णु भगवान की जय.

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