डोगरों की पुरानी संस्कृति, रीति-रिवाजों, भाषा की बात करने वालीं पद्मश्री पद्मा सचदेव का निधन हो गया है। ऐसे में उनके निधन से सिंगर लता मंगेशकर को बहुत दुःख हुआ है। जी हाँ और उन्होंने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
Meri pyari saheli aur mashoor lekhika, kaviyatri aur sangeetkar Padma Sachdev ke swargwas ki khabar sunkar main nishabd hun, kya kahun,? Hamari bahut purani dosti thi,Padma aur uske pati hamare pariwar ke sadasya jaisehi the .Mere America ke shows ka nivedan usne kiya tha. pic.twitter.com/jwFMmNp9PA
— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) August 4, 2021
लता मंगेशकर ने ट्वीट कर लिखा है, "मेरी प्यारी सहेली और मशहूर लेखिका कवयित्री और संगीतकार पद्मा सचदेव के निधन की खबर सुनकर मैं नि:शब्द हूं। क्या कहूं। हमारी बहुत पुरानी दोस्ती थी। पदमा और उसके पति हमारे परिवार के सदस्य जैसे ही थे। मेरे अमेरिका के शो का निवेदन उसने किया था। मैंने उसके डोगरी गाने गाए थे। जो बहुत लोक प्रिय हुए थे। पदम के पति सुरेंद्र सिंह जी अच्छे शास्त्रीय गायक हैं। जिन्होंने मेरा गुरुवाणी का रिकार्ड किया था। कई यादें हैं आज मैं बहुत दुखी हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। '' आप सभी को बता दें कि पद्मा सचदेव एक भारतीय कवयित्री और उपन्यासकार थीं। उन्होंने डोगरी भाषा की पहली आधुनिक महिला कवि के रूप में अपनी छवि बनाई थी। पद्मा ने हिंदी में भी लेखनी की।
Maine uske Dogri gaane gaaye the jo bahut lokpriya hue the. Padma ke pati Surinder Singh ji acche shashtriya gayak hain jinhone mera Gurubani ka record kiya tha. Kai yaadein hain. Aaj main bahut dukhi hun. Ishwar padma ki aatma ko shanti pradan karein.
— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) August 4, 2021
जी दरअसल उन्होंने 'मेरी कविता मेरे गीत' सहित कई कविता संग्रह प्रकाशित किए, जिसने 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता। इसी के साथ उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (1970), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1987), हिंदी अकादमी पुरस्कार (1987-88), उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी के सौहार्द पुरस्कार (1989) से सम्मानित किया गया था। आप सभी को बता दें कि उनकी प्रकाशित कृतियों में 'अमराई', 'भटको नहीं धनंजय', 'नौशीन', अक्खरकुंड', 'बूंद बावड़ी' (आत्मकथा), 'तवी ते चन्हान', 'नेहरियां गलियां', 'पोता पोता निम्बल', 'उत्तरबैहनी', 'तैथियां', 'गोद भरी' तथा हिंदी में 'उपन्यास 'अब न बनेगी देहरी' प्रमुख रहीं हैं।
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