नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार (29 जुलाई) को कथित पेपर लीक के बाद यूजीसी-नेट परीक्षा रद्द करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका को खारिज करना उसके गुण-दोष पर निर्णय नहीं है, क्योंकि यह एक वकील द्वारा दायर की गई थी, न कि पीड़ित छात्रों के द्वारा।
CJI ने वकील से कहा, "आप (वकील) क्यों कोर्ट आ रहे हैं? छात्रों को स्वयं यहां आने दीजिए।" CJI चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि, "उपर्युक्त जनहित याचिका को अस्वीकार करते हुए हम इसके गुण-दोष पर कुछ नहीं कहेंगे।" सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के रूप में जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता उज्ज्वल गौड़ से कहा कि वे कुछ कानूनी मामलों पर ध्यान केंद्रित करें और ऐसे मुद्दों को पीड़ित व्यक्तियों के लिए छोड़ दें।
यह याचिका केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा यूजीसी-नेट परीक्षा को रद्द करने के निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी, क्योंकि ऐसी सूचनाएं थीं कि इसकी सत्यनिष्ठा से समझौता किया गया है। मंत्रालय ने 19 जून को यूजीसी-नेट परीक्षा रद्द करने का आदेश दिया था और मामले को जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया था। याचिका में गौड़ ने यूजीसी-नेट परीक्षा की प्रस्तावित पुनः परीक्षा पर तत्काल रोक लगाने का निर्देश देने की भी मांग की, जब तक कि CBI पेपर लीक आरोपों की जांच पूरी नहीं कर लेती।
याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के हालिया निष्कर्षों को देखते हुए यह निर्णय न केवल मनमाना है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी है। अधिवक्ता रोहित पांडे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, "सीबीआई की जांच से यह तथ्य सामने आया है कि पेपर लीक होने का संकेत देने वाले साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है, जिससे रद्दीकरण का आधार निरस्त हो जाता है।'' याचिकाकर्ता ने दलील दी कि परीक्षा को "अनुचित" तरीके से रद्द करने से उन अभ्यर्थियों को काफी परेशानी, चिंता और अनावश्यक संसाधनों का नुकसान हुआ है, जिन्होंने इस महत्वपूर्ण परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की थी।
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