ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी अहमदाबाद में रहती हैं. दीपावली पर हम उनका इंतजार करते हैं, सुंदर रंगोली बनाते हैं, मिट्टी के दीये जलाते हैं और उनका स्वागत करते हैं. इस कहानी को शाश्वत बनाने के लिये अहमदाबाद के एक पुराने शहर के तीन दरवाजा की गुफा में लंबे समय से एक जलता हुआ दिया रखा हुआ है. अहमदाबाद में लक्ष्मी की उपस्थिति है,
इससे संबंधित वहां कई सारी कहानियां हैं. यह कहा जाता है कि देर रात में देवी जब शहर के प्रवेश द्वार पर खड़ी थीं तो वहां खड़े द्वारपाल ने उन्हें शहर में प्रवेश करने की अनुमति दी और फिर दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया. जब उन्होंने बाहर जाने के लिये दरवाजे को खोलने को कहा तो द्वारपाल ने कहा कि इसके लिए सुल्तान से इजाजत लेनी होगी. वह उन्हें वहीं अकेला छोड़ सुल्तान के पास इजाजत लेने चला गया.
सुल्तान शीघ्रता से वहां पहुंचा लेकिन तब तक वो शहर में कहीं गायब हो गई थी. दूसरी कहानी यह है कि सुल्तान ने जानबूझ कर द्वारपाल से कहा कि अब वो शहर नहीं छोड़ सकती हैं. तीसरी कहानी के अनुसार धन की देवी पहले से ही शहर में थी. वह शहर छोड़ना चाहती थीं और इसके लिये उन्होंने द्वारपाल से दरवाजा खोलने का अनुरोध किया लेकिन द्वारपाल ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि अगर वो शहर छोड़ देतीं तो अहमदाबाद अपनी समृद्धि खो देता.
तब से तीसरे दरवाजे के केंद्रीय वृत्त-खंड पर एक दीपक जलता आ रहा है और जो अब तीन दरवाजे के नाम से जाना जाता है. सालों से हम यह देखते आ रहे हैं कि जब्बार मिर्जा यहां एक दीपक जलाते आ रहे हैं. यह कहा जाता है कि यह परिवार इस जलते दीपक के रखवाले हैं. आज वो जिंदा नहीं हैं लेकिन उनके बदले में उनकी पत्नी इस दीपक की देखभाल कर रही हैं.
कहानी का शेष भाग अगले भाग में
रामायण के पाठ से बढ़ती है इच्छा शक्ति