नई दिल्ली: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने हाल ही में भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाने वाले बयान दिए हैं और उनका रुख भारत को लेकर लगातार बदलता हुआ दिख रहा है। प्रारंभ में, उन्होंने कनाडाई संसद में कहा कि भारत के खिलाफ विश्वसनीय आरोप थे, और अब वह जोर देकर कहते हैं कि भारत के खिलाफ विश्वसनीय सबूत नहीं हैं। भारत ने यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी है कि ट्रूडो के बयान प्रेरित हैं और कनाडा में हिंसा के कृत्यों में भारत सरकार की संलिप्तता के आरोप निराधार हैं।
बता दें कि, हाल के वर्षों में, भारत ने कनाडा को खालिस्तानी आतंकवादियों से संबंधित कई दस्तावेज़ उपलब्ध कराए हैं, लेकिन कनाडा की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस स्थिति ने ट्रूडो के बयानों के पीछे के उद्देश्यों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत विरोधी ताकतें भारत को अस्थिर करने और इसके विकास में बाधा डालने के लिए ट्रूडो को मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं, संभवतः एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय एजेंडे के हिस्से के रूप में ऐसा हो सकता है।
CSIS uncovered:
— Dr. Leslyn Lewis (@LeslynLewis) February 28, 2023
2014 Gov of China sponsored $1M donation to the Pierre Trudeau Foundation.
2019 China’s Communist Party interference
2021 elections—the PM refused to listen to CSIS.
2022 China having police stations in Canada.
To stop this destruction, Trudeau must resign. pic.twitter.com/83pzxnC76r
इस परिदृश्य में ट्रूडो की स्थिति शह-मात के खेल में शतरंज के मोहरे जैसी है। ट्रूडो के भारत पर आरोपों से पहले कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों की पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के साथ एक बैठक हुई थी। इसके अतिरिक्त, जस्टिन ट्रूडो के पिता के नाम पर बने पियरे ट्रूडो फाउंडेशन (Pierre Trudeau Foundation) को भारत के धुर विरोधी चीन से महत्वपूर्ण धन प्राप्त हुआ, और रिपोर्टों से पता चलता है कि चीन ने ट्रूडो को चुनाव जीताने में भी अहम भूमिका निभाई है। इससे यह आशंका जोर पकड़ती है कि यह विवाद आगामी 2024 के चुनावों और भारत के प्रक्षेप पथ को प्रभावित करने में विदेशी शक्तियों के हितों से संबंधित हो सकता है।
दरअसल, विदेशी शक्तियां भारत के तीव्र विकास को लेकर चिंतित हो गई हैं, जैसा कि भारत द्वारा G-20 शिखर सम्मेलन की सफल मेजबानी और बेहतरीन आर्थिक विकास दर से पता चलता है। वे अब भारत को एक महत्वपूर्ण खतरे के रूप में देखते हैं, जिसके कारण भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए विभिन्न षड्यंत्रकारी प्रयास किए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को बदनाम करने से सबसे ज्यादा फायदा चीन को होता है। कनाडाई अखबार नेशनल पोस्ट के मुताबिक, कनाडा और भारत के बीच तनाव का मुख्य लाभार्थी चीन हो सकता है। ट्रूडो एक साल से अधिक समय से कनाडाई चुनावों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के विदेशी हस्तक्षेप पर बचाव की मुद्रा में हैं। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि चीन ने कनाडा में 2019 और 2021 दोनों चुनावों में ट्रूडो को जीतने में मदद करने में भूमिका निभाई है, जिससे उनकी साझेदारी पर सवाल उठ रहे हैं।
वहीं, ट्रूडो ने चीन के साथ अपनी कथित मिलीभगत के संबंध में कोई ठोस जवाब नहीं दिया है, और उन्होंने लीक हुए खुफिया दस्तावेजों को अशुद्धियों को निर्दिष्ट किए बिना गलत बताकर खारिज कर दिया है। यह मुद्दा चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि ट्रूडो के फाउंडेशन को चीन से पर्याप्त दान मिला था और विवाद के बीच फाउंडेशन के पूरे निदेशक मंडल ने इस्तीफा दे दिया था। इसी तरह, भारत में, राजीव गांधी फाउंडेशन (Rajiv Gandhi Foundation) को 2005 और 2007 के बीच चीन से 1.35 करोड़ की फंडिंग मिली थी। फांउडेशन की एनुअल रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई थी। हालाँकि, कांग्रेस का तो चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक अग्रीमेंट भी है, जो 2008 में हुआ था। उसमे दोनों पार्टियों के आपसी सहयोग की बातें थी, लेकिन वो सहयोग कैसा होगा, कितना होगा, किस कीमत पर होगा, इसकी अधिक जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं है। इससे राहुल गांधी जैसे कांग्रेस राजनेताओं के बारे में अटकलें शुरू हो गईं, जिन्होंने विदेशों में भारत की आलोचना करते हुए चीन के पक्ष में बयान दिए हैं। दरअसल, राहुल जहाँ भारत में सरकार को घेरते हुए अक्सर कहते रहे हैं कि, 'चीन हमारे जवानों को पीट रहा है, सरकार चुप है, चीन ने हमारी जमीन छीन ली है और सरकार चुप है।' वहीं, विदेश दौरे पर राहुल गांधी कह चुके हैं कि, 'भारत में लोकतंत्र मर रहा है और चीन शांति का समर्थक है, शांतिप्रिय देश है।' यानी, राहुल देश में चीन का नाम लेकर सरकार को घेरते हैं, वहीं विदेश जाकर चीन को शांतिप्रिय बताते हैं और भारत सरकार पर लोकतंत्र मिटाने का आरोप लगाते हैं। ऐसे में सवाल उठते हैं कि, क्या इसके पीछे चीन की वही फंडिंग वजह है, जो ट्रुडो को भी मिल रही है।
We Indians are proud that our soldiers dealt sternly with the Chinese soldiers & sent them back, but Rahul Gandhi has doubts about it. It is quite natural for him, as he has close links with China & has received funding for Rajiv Gandhi Foundation from them#IStandWithIndianArmy pic.twitter.com/ZjnYoXrdBa
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) December 17, 2022
बता दें कि, कनाडा में भारत विरोधी प्रदर्शनों में पाकिस्तान की संलिप्तता भी सामने आई है, कथित तौर पर ISI प्रदर्शनों का आयोजन कर रही है और खालिस्तानी आतंकवादियों को वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। यह भी गौर करें कि, चीन-पाकिस्तान परम मित्र हैं और दोनों भारत के परम शत्रु भी हैं। कनाडा में ISI एजेंटों और खालिस्तानी आतंकवादियों के बीच गुप्त बैठकों की भी खबरें आई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस विवाद में ट्रूडो की हरकतें उल्टी पड़ गईं, जिससे उन्हें खुद राजनीतिक झटका लगा। उनके शुरुआती बयानों से ध्यान घरेलू मुद्दों से हट गया, जिससे उन्हें अपने ही देश में शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
यह संकट कनाडा की इंडो-पैसिफिक रणनीति पर भी असर डालता है, जिसका उद्देश्य चीनी की विस्तारवादी नीतियों की आलोचना करते हुए भारत के साथ संबंधों को मजबूत करना है। हालाँकि, हालिया विवाद ने कनाडा के इंडो-पैसिफिक प्रयासों को ठंडा कर दिया है। ठोस सबूतों के अभाव में, यहां तक कि ब्रिटिश कोलंबिया के प्रीमियर, जहां हाल ही में एक खालिस्तानी आतंकवादी मारा गया था, ने स्वीकार किया कि भारत की भागीदारी के बारे में जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध ओपन-सोर्स जानकारी पर आधारित थी, जो ठोस सबूतों की कमी का संकेत देता है।
पेंटागन के पूर्व अधिकारी और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो माइकल रुबिन का कहना है कि अगर संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) को दो दोस्तों में से किसी एक को चुनना पड़ा, तो वह भारत को चुनेगा। वह बताते हैं कि भारत के खिलाफ आरोप कासिम सुलेमानी और ओसामा बिन लादेन जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिका द्वारा की गई कार्रवाई से बिल्कुल अलग नहीं हैं। कुल मिलाकर, यह विवाद विदेशी हस्तक्षेप, मिलीभगत और हालिया बयानों के पीछे की प्रेरणाओं पर सवाल उठाता है, जिसमें भारत को जटिल भू-राजनीतिक गतिशीलता को देखते हुए निराधार आरोपों का सामना करना पड़ रहा है और इसके पीछे चीन की फंडिंग और पाकिस्तान की आतंकी ताकतें दोनों काम कर रहीं हैं। लेकिन, चीन और पाकिस्तान का मोहरा कौन-कौन बन रहा है, ये भी विचार करने योग्य है।