कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया था. हालांकि लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर हमारे वातावरण और प्रकृति पर पड़ा है. शुद्ध हवा और शांत माहौल की बदौलत कई अच्छे बदलाव आज हमे देखने को मिल रहे हैं. इसी दौरान चंबल नदी का तट भी विलुप्त होते जा रहे घड़ियालों के बच्चों से चहक उठा है. जी हां, राजस्थान के धौलपुर, मध्य प्रदेश के देवरी और उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के वाह इलाके में चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र में घड़ियाल अभ्यारण्य बना हुआ है. यहां घड़ियालों को बचाने और उनकी संख्या को बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किए जाते रहते हैं. फिलहाल चंबल नदी में घड़ियालों की संख्या 1859 है. अगर जन्म लेने वाले घड़ियालों के बच्चों को जोड़ा जाए तो इनकी संख्या करीब तीन हजार के आसपास हो सकती है.
बता दें की मध्य प्रदेश के देवरी और राजस्थान के धौलपुर रेंज में करीब 1100 से अधिक घड़ियाल के बच्चे अंडों से बाहर निकल आए हैं. इसके साथ ही आगरा के वाह से भी काफी अंडों से बच्चे बाहर निकल आए हैं. अगर इन बच्चों की लंबाई 1.2 मीटर होगी तो इन्हें नदी में छोड़ दिया जाएगा. कम लंबाई वाले बच्चों को अभ्यारण केंद्र में रखा जाता है और लंबाई पूरी होने पर चंबल नदी में छोड़ दिया जाता है. आपको बता दें कि 1980 से पहले जब भारतीय प्रजाति के घड़ियालों का सर्वे हुए था, तो उस वक्त चंबल नदी में केवल 40 घड़ियाल ही मिले थे जबकि 1980 में इनकी संख्या 435 हो गई थी. उसी वक्त से इस इलाके को घड़ियाल अभ्यारण्य क्षेत्र घोषित किया गया था.
दरअसल, चंबल नदी के किनारे झुंड में इन बच्चों की उछल-कूद देखकर लोग बहुत खुश हो रहे हैं. ऐसा पहली बार नजारा देखने को मिला है, जब हजारों की तादाद में घड़ियाल के बच्चों ने जन्म लिया है. अप्रैल से जून तक घड़ियाल का प्रजनन काल रहता है. मादा घड़ियाल मई-जून में रेत में 30 से 40 सेमी का गड्ढा खोद कर 40 से लेकर 70 अंडे देती है. जब इन अंडों में सरसराहट शुरू हो जाती है, तो मादा रेत हटा कर बच्चों को निकालती है और चंबल नदी में ले जाती है.
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