श्रीगणेश सर्वत्र गजमुख स्वरूप में पूजे जाते हैं. उनके समीप रिद्धि और सिद्धि रहती हैं. श्री गणेश के दाहिनी तरफ सिद्धि है तो बाईं तरफ रिद्धि. और इस तरह सिद्धि की तरफ सूंड वाले गणेश सिद्धि विनायक कहलाते हैं. आमतौर पर बाईं सूंड के श्रीगणेश पूजे जाते हैं क्योंकि दाहिनी सूंड के श्रीगणेश की पूजा कडे नियमों वाली है और उसमें जरा-सी चूक भी देवता को प्रकोप दिलाती है.
लेकिन सत्य तो यह है कि व्यवहार में जैसे हम दायां-बायां करते हैं उसी तरह उपासना में भी है. उपासना में बाएं बाजू का आशय व्यावहारिक बातों से है तो दाहिने का मोक्ष प्राप्ति से. इसलिए दुनियादारी में जीने वाले भक्तों को बाईं सूंड के गणेश का पूजन करना चाहिए और जिन्हें मोक्ष प्राप्त करना है उन्हें दाहिनी सूंड वाले गणेश का पूजन करना चाहिए.
श्री गणेश को रक्तवस्त्र, रक्त पुष्प, रक्त चंदन या लाल रंग बेहद प्रिय है. चूंकि श्रीगणेश सृष्टि के कर्ता हैं यानी रजोगुणी हैं. सृष्टि निर्माण के लिए रजोगुण जरूरी है जिसका रंग लाल माना गया है. इसी तरह उन्हें दूर्वा भी अतिप्रिय है. अनलासुर दैत्य का वध करने के जब श्रीगणेश ने उसे निगल लिया था तो उनके पेट में बहुत जलन हुई.
कई उपायों के बाद जब जलन शांत नहीं हुई तो कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा की 21 गांठ बनाकर चढ़ाई और उन्हें राहत मिली. तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई.