भगवान विष्णु के भक्त उनकी कहानी, उनके अवतारों को जानने के लिए बेताब रहते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान विष्णु के पहले अवतार की कथा जो उन्होंने मत्स्य के रूप में लिया था।
पौराणिक कथा- प्राचीन काल में सत्यव्रत नामक एक राजा थे। वह बड़े ही उदार और भगवान के परम भक्त थे। एक दिन वह कृतमाला नदी में तर्पण कर रहे थे। उसी समय उनकी हथेली में एक छोटी-सी मछली आ गई। उसने अपनी रक्षा की पुकार की। उस मछली की बात सुन कर राजा उसे कमंडल में अपने आश्रम पर ले आए। कमंडल में वह इतनी बढ़ गई कि पुन: उसे एक बड़े मटके में रखना पड़ा। थोड़ी देर बाद वह उससे भी बड़ी हो गई और मटका छोटा पड़ने लगा। अंत में राजा सत्यव्रत हार मान कर उस मछली को समुद्र में छोड़ने चले गए। समुद्र में डालते समय मछली ने कहा, ''राजन! समुद्र में बड़े-बड़े मगर आदि रहते हैं, वे मुझे खा जाएंगे इसलिए मुझे समुद्र में न छोड़ें।''मछली की यह मधुर वाणी सुनकर राजा मोहित हो गए। उन्हें मत्स्य भगवान की लीला समझते देर न लगी।
वह हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करने लगे। मत्स्य भगवान ने अपने प्यारे भक्त सत्यव्रत से कहा, ''सत्यव्रत! आज से सातवें दिन तीनों लोक प्रलय काल की जलराशि में डूबने लगेंगे। उस समय मेरी प्रेरणा से तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आएगी। तुम सभी जीवों, पौधों और अन्न आदि के बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ उस पर बैठकर विचरण करना। जब तेज आंधी चलने के कारण नाव डगमगाने लगेगी तब मैं इसी रूप में आकर तुम लोगों की रक्षा करूंगा।'' भगवान राजा से इतना कह कर अंतर्ध्यान हो गए। अंत में वह समय आ पहुंचा। राजा सत्यव्रत के देखते ही देखते सारी पृथ्वी पानी में डूबने लगी। राजा ने भगवान की बात याद की। उन्होंने देखा कि नाव भी आ गई है। वह बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ तुरंत नाव पर सवार हो गए। सप्तर्षियों की आज्ञा से राजा ने भगवान का ध्यान किया। उसी समय उस महान समुद्र में मत्स्य के रूप में भगवान प्रकट हुए। तत्पश्चात भगवान ने प्रलय के समुद्र में विहार करते हुए सत्यव्रत को ज्ञान भक्ति का उपदेश दिया। हयग्रीव नामक एक राक्षस था। वह ब्रह्मा के मुख से निकले हुए वेदों को चुरा कर पाताल में छिपा हुआ था। भगवान मत्स्य ने हयग्रीव को मार कर वेदों का भी उद्धार किया।
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