नई दिल्ली: दिल्ली में डेंगू के बढ़ते केसों के मध्य प्लेटलेट का कम होना एक ऐसा लक्षण है जिससे अधिकांश मरीज डर जाते हैं और किसी भी हालत में हॉस्पिटल में भर्ती होन चाहते है. खून के बहने या रूकने के लिए प्लेटलेट का बड़ा रोल होता है, जबकि आपको जानकर हैरानी होगी कि प्लेटलेट का कम हो जाना ही डेंगू के गंभीर होने का एक मात्र पैमाना नहीं होता है.
अच्छी प्लेटलेट वाले डेंगू मरीज़ भी खतरे में पड़ सकते हैं: जहां इस बारें में आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के वरिष्ठ सलाहकार और आंतरिक चिकित्सा विभाग के HOD डॉ. राकेश पंडित ने कहा है कि रोगी की गंभीरता केवल प्लेटलेट काउंट से जुड़ी नहीं होती है. 40,000-50,000 प्लेटलेट काउंट वाले डेंगू शॉक सिंड्रोम के मरीज के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक हो सकता है. अगर सामान्य प्लेटलेट काउंट वाले रोगी में बीपी में उतार-चढ़ाव, हीमोग्लोबिन, सांस फूलने की परेशानी, रक्तस्राव की समस्या, पेट की समस्या जैसे अन्य लक्षण हैं, तो भी वह खतरे में पड़ सकता है. रोगी में प्लेटलेट की संख्या की तुलना में पैक सेल वॉल्यूम का कंसंट्रेशन ज्यादा अहम् होता है. हीमोग्लोबिन में उतार-चढ़ाव मरीज के लिए अधिक खतरनाक हो सकता है.
जहां इस बात का पता चला है कि डेंगू के केस तब और खतरनाक हो जाते है, जब मरीज दूसरी बार इससे संक्रमित हो जाता है. डेंगू में दोबारा संक्रमण अधिक खतरनाक है. अगर मरीज 2 वर्ष पहले डेंगू से पीड़ित था और अब फिर से संक्रमित हो जाए, तो इससे खतरा अधिक बढ़ जाता है. डेंगू से बचाव के लिए अनावश्यक एंटीबायोटिक्स और एस्पिरिन जैसी अन्य दर्द निवारक दवाओं से बचना चाहिए. डेंगू की संभावना को रोकने के लिए नियमित जांच ज़रूरी है.
सीएम शिवराज का अटपटा बयान, बोले- गोबर और गोमूत्र से मजबूत होगी अर्थव्यवस्था...
अखिलेश ने अपमान किया लेकिन काम बहुत किया: शिवपाल यादव
'बाल दिवस' पर बॉलीवुड की इस मशहूर अभिनेत्री ने कमजोर वर्ग के बच्चों के साथ बिताया समय