स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात बहुत ही अधिक खराब थी। कृषि अधारित अर्थव्यवस्था होने के बाद भी अनेक सालों तक यहां लोग भुखमरी के कगार पर अपनी जिंदगी गुजार रहे थे। उस वक़्त देश की प्राथमिकता थी कि कैसे अर्थव्यवस्था को गति दी जाए जिससे लाखों-करोड़ों व्यक्तियों को भुखमरी से राहत दिलाई जा सके। एम.एस. स्वामीनाथन उन वैज्ञानिकों में से एक हैं, जिनकी कोशिशों की बदौलत साठ के दशक में कृषि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई तकनीक का उपयोग आरम्भ किया गया।
एम.एस. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ। उनके पिता एम।के। संबासिवम गांधी के सपोटर थे तथा स्वतंत्रता के वक़्त उनके पिता ने स्वदेशी आंदोलन में हिस्सा भी लिया। स्वामीनाथन की शिक्षा तमिलनाडु एवं केरल में हुई। उन्होंने जूलॉजी में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। तत्पश्चात, उन्होंने कृषि विज्ञान में कॅरियर बनाने का फैसला लिया। आजादी के पश्चात् भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली की तरफ रुख किया। वैसे कम ही व्यक्तियों को पता है कि स्वामीनाथन यूपीएससी की परीक्षा में भी बैठे एवं आईपीएस के लिए क्वालफाई भी किया मगर जेनेटिक्स में ध्यान होने के कारण उन्होंने कृषि क्षेत्र में काम करने का फैसला लिया।
जेनेटिक्स वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू वर्ग के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किया। स्वामीनाथन की यह कोशिश कामयाब रही। देश में पहली बार गेहूं की बंपर पैदावार हुई। स्वामीनाथन की इन अथक कोशिशों के कारण ही उन्हें देश में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। हरित क्रांति के पश्चात् ही भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया।
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