आप सभी इस बात से वाकिफ ही होंगे कि देवी भागवत पुराण में देवी चंद्रघंटा के स्वरूप का वर्णन किया गया है और उसी के अनुसार मां चंद्रघंटा स्वयं शक्ति की शिवदूती रूप है. इसी के साथ देवी चंद्रघंटा के माथे पर एक अर्धचंद्र के आकर में तिलक सुशोभित है जो की मां के स्वरुप को और दिव्य और भव्य बनता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनका मंत्र और उनकी आरती.
मंत्र1-: पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता. प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता. - यह मंत्र नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा करने के समय जपना चाहिए. वहीं इसके बाद अन्य पूजन शुरू करना चाहिए और फिर अंत में आरती आदि करनी चाहिए.
मंत्र-2: ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः - कहते हैं यह मंत्र का जाप करने से माँ तुरंत प्रसन्न हो जाती है और मनचाहा वरदान दे देती है.
देवी चंद्रघंटा की आरती-
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम. पूर्ण कीजो मेरे काम..
चन्द्र समाज तू शीतल दाती. चन्द्र तेज किरणों में समाती..
क्रोध को शांत बनाने वाली. मीठे बोल सिखाने वाली..
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम. पूर्ण कीजो मेरे काम..
मन की मालक मन भाती हो. चंद्रघंटा तुम वर दाती हो..
सुन्दर भाव को लाने वाली. हर संकट में बचाने वाली..
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम. पूर्ण कीजो मेरे काम..
हर बुधवार को तुझे ध्याये. श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए..
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए. शीश झुका कहे मन की बाता..
पूर्ण आस करो जगत दाता. कांचीपुर स्थान तुम्हारा..
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम. पूर्ण कीजो मेरे काम..
कर्नाटिका में मान तुम्हारा. नाम तेरा रटू महारानी..
भक्त की रक्षा करो भवानी.
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