आप सभी जानते ही हैं कि नवरात्र का सप्ताह आरम्भ हो चुका है. ऐसे में आज चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघण्टा स्वरुप की पूजा विधि विधान से की जाती है. आप सभी को बता दें कि नौ देवियों में से मां चंद्रघण्टा की विधिपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति निर्भीक और वीर होता है, साथ ही उसमें विनम्रता भी आती है. तो आइए आज हम आपको बताते हैं आइए जानते हैं कि नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघण्टा कौन है और क्या है उनका स्वरूप और उनके पूजन का महत्व.
कौन हैं मां चंद्रघण्टा - कहा जाता है असुरों का दमन कर उनके प्रभाव को खत्म करने के लिए मां दुर्गा ने चंद्रघण्टा स्वरूप धारण किया था. कहते हैंअसुरों का दमन कर उन्होंने देवताओं को उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी. वहीँ मां चंद्रघण्टा देवी पार्वती की सुहागन अवतार मानी जाती हैं और महादेव से विवाह के पश्चात देवी पार्वती ने अपने ललाट पर आधा चंद्रमा धारण कर लिया, जिसके कारण उनको चंद्रघण्टा कहा जाता है. आपको बता दें कि वह सिंह पर सवार होकर युद्ध मुद्रा में होती हैं. वे अपनी 10 भुजाओं में कमल, कमंडल और अनके अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं.
मां चंद्रघण्टा की पूजा का महत्व - कहते हैं माँ चंद्रघंटा के आशीर्वाद से ऐश्वर्य और समृद्धि के साथ सुखी दाम्पत्य जीवन प्राप्त होता है. अगर इनकी पूजा की जाए तो विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं. इसी के साथ मां चंद्रघंण्टा परिवार की रक्षक हैं. इनका संबंध शुक्र से है. यदि आपकी कुंडली में शुक्र दोष हो तो आप मां चंद्रघण्टा की पूजा करें, इससे सभी दोष दूर हो जाते हैं.
माँ का स्वरूप - मां के मस्तक पर घंटे के आधा चंद्रमा शोभायमान है, इसलिए मां दुर्गा के इस स्वरूप को चंद्रघंटा कहा गया है. आपको बता दें कि देवी का यह स्वरूप कल्याणकारी है और इनके शरीर का रंग सोने जैसा चमकता है. इसी के साथ मां की 10 भुजाएं हैं. वह खड़ग और खपरधारी हैं. मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला है.
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